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(12) पेय, (13) पक्वान्न, ( 14 ) ओदन, (15) सूप - दाल, ( 16 ) घृत आदि विगय, (17) शाक, ( 18 ) माधुरक (मेवा), (19) जेमन - भोजन के पदार्थ, (20) पीने का पानी, (21) मुखवास, (22) वाहन, (23) उपानत ( जूते आदि), (24) शय्यासन, ( 25 ) सचित्त वस्तु, (26) खाने के अन्य पदार्थ ।
इन 26 पदार्थों की मर्यादा श्रावक जीवन भर के लिए करता है। इसके अतिरिक्त वह प्रतिदिन अपनी मर्यादा को और संकुचित करता है। इसके लिए वह प्रतिदिन 14 नियमों का चिन्तवन करके अपनी शक्ति के अनुसार उन्हें ग्रहण करता है।
चौदह नियम - (1) सचित्त - पृथ्वीकाय, वनस्पतिकाय आदि के सेवन की मर्यादा, (2) द्रव्य - खाद्य पदार्थों की संख्या निश्चित करना, (3) विगय- घी, दूध, दही, तेल, गुड़ - ये पदार्थ विगय हैं, इनमें से कुछ अथवा सभी पदार्थों का त्याग करना, (4) उपानह - जूते-मोजे आदि पहनने की मर्यादा, (5) ताम्बूल - पान-सुपारी - इलायची आदि की मर्यादा, ( 6 ) वस्त्र-वस्त्र पहनने की मर्यादा, (7) कुसुम - पुष्प, इत्र, सुगन्धित पदार्थों की सीमा, ( 8 ) वाहन - सवारी आदि की मर्यादा, ( 9 ) शयन- शय्या एवं स्थान की मर्यादा, ( 10 ) विलेपन - केसर, चन्दन आदि शरीर पर विलेपन की जाने वाली वस्तुओं की मर्यादा, ( 11 ) ब्रह्मचर्य नियम - ब्रह्मचर्य पालन का नियम लेना, (12) दिशा परिमाण - दसों दिशाओं में गमनागमन का नियम, ( 13 ) स्नान - नियम- स्नान का त्याग अथवा स्नान हेतु जल का परिमाण, ( 14 ) भक्त- आहार- पानी तथा अन्य खाद्य पदार्थों का वजन निश्चित करना ।
ये चौदह नियम श्रावक एक अहोरात्र ( 24 घण्टे ) के लिए लेता है - अर्थात् एक सूर्योदय से दूसरे सूर्योदय तक।
श्रावक को उपभोग - परिभोग पदार्थों को प्राप्त करने के लिए कोई न कोई धन्धा या रोजगार करना ही पड़ता है; किन्तु सुश्रावक ऐसा व्यापार अथवा आजीविका का साधन अपनाता है, जिसमें कम से कम हिंसा हो ।
कुछ धन्धे ऐसे हैं जिनमें महारम्भ - महापरिग्रह होता है। उनसे अधिक गाढ़े और चिकने कर्मों का बँध होता है। ऐसे रोजगारों को कर्मादान कहा गया है। सुश्रावक इन कर्मादानों को आजीविका हेतु नहीं अपनाता ।
कर्मादान पन्द्रह हैं।
15 कर्मादान - (1) अंगार कर्म - लकड़ी से कोयले बनाकर बेचने का व्यवसाय, (2) वन कर्म - जंगलों को ठेके पर लेकर वृक्षों को काटने का * योग की आधारभूमि : श्रद्धा और शील ( 1 ) 119