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(14) अपनी आर्थिक स्थिति के अनुकूल वस्त्र पहनना; आशय यह है कि विशेष तड़क-भड़क के वस्त्र न पहने, सामान्य किन्तु साफ वस्त्र पहने, वेश ऐसा हो कि गंभीरता की छाप पड़े। (15) बुद्धि के आठ गुणों से युक्त होकर धर्म श्रवण करना । (16) अजीर्ण होने पर भोजन न करना ।
(17) नियत समय पर प्रसन्नचित्त होकर भोजन करना ।
(18) धर्म से मर्यादित होकर अर्थ और काम पुरुषार्थ का सेवन करे अर्थात् अर्थार्जन एवं काम- सेवन में धर्म की मर्यादा का ध्यान रखे।
(19) दीन, असहाय, अतिथि और साधुजनों का यथायोग सत्कार
करना।
(20) कभी दुराग्रह के वश में न हो अर्थात् दुराग्रही न बने। (21) गुणग्राही हो, जहाँ से भी गुण मिलें, उन्हें ग्रहण करे । (22) देश-काल के प्रतिकूल आचरण न करे ।
( 23 ) अपनी शक्ति और सामर्थ्य को समझे, शक्ति होने पर ही किसी काम में हाथ डाले ।
(24) सदाचारी तथा अपने से अधिक ज्ञानवान व्यक्तियों की विनय एवं भक्ति करे ।
(25) कर्तव्यपरायण हो अर्थात् जिनके पालन-पोषण का भार उसके ऊपर हो, उनका यथाविधि पालन-पोषण करे।
(26) दीर्घदर्शी हो अर्थात् आगे-पीछे का विचार करके कार्य करे । (27) अपने हित-अहित एवं भलाई - बुराई को समझे ।
(28) लोकप्रिय हो, अर्थात् अपने सदाचार और सेवाकार्य द्वारा जनता का प्रेम संपादन करे ।
(29) कृतज्ञ हो-अपने प्रति किये गये उपकार को नम्रतापूर्वक स्वीकार करे।
(30) लज्जाशील हो - अनुचित कार्य करने में लज्जा का अनुभव करे । (31) दयावान हो ।
( 32 ) सौम्य हो - चेहरे पर शांति और सौम्यता झलकती हो ।
* योग की आधारभूमि : श्रद्धा और शील (1) *111*