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________________ आगार-चारित्र आगार-चारित्र के भी गृहस्थ की भूमिका की अपेक्षा से दो भेद हैं-(1) सामान्य गृहस्थधर्म और (2) विशेष गृहस्थधर्म। विशेष गृहस्थधर्म की पूर्व पीठिका सामान्य गृहस्थधर्म है। जिस प्रकार विशाल भवन बनाने से पहले भूमि समतल की जाती है और गहरी नींव खोदी जाती है उसी प्रकार विशेष गृहस्थधर्म ग्रहण करने से पहले सामान्य गृहस्थधर्म का पालन करना आवश्यक है। सामान्य गृहस्थधर्म के पालन से व्यक्ति मार्गानुसारी (धर्म तथा योग के मार्ग को अनुसरण करने योग्य) बनता है। मार्गानुसारी के 35 गुण शास्त्रों में बताये गये हैं। वे ये हैं (1) न्यायनीति से धन का उपार्जन करने वाला हो। (2) शिष्ट पुरुषों के आचार की प्रशंसा करने वाला हो। (3) अपने कुल और शील में समान; किन्तु भिन्न गोत्र में विवाह सम्बन्ध करने वाला। (4) पापों से डरने वाला-पापभीरु हो। (5) प्रसिद्ध देशाचार का पालन करने वाला हो। (6) निन्दक न हो-किसी भी और विशेष रूप से राजा तथा राज्यकर्मचारियों की निन्दा न करे। . (7) एकदम खुले स्थान पर अथवा बिल्कुल ही गुप्त स्थान पर घर न बनाने वाला। (8) घर से बाहर निकलने के अनेक द्वार न रखना। (9) सदाचारी पुरुषों की संगति करना। (10) माता-पिता की सेवा-भक्ति करना। (11) चित्त में क्षोभ उत्पन्न करने वाले अर्थात् झगड़े-टंटे के स्थान से दूर रहना। (12) कोई भी निन्दनीय कार्य न करना। (13) आय के अनुसार ही व्यय करना। 1. (क) आचार्य हरिभद्र-धर्मबिन्दु, प्रकरण 1 (ख) आचार्य हेमचन्द्र-योगशास्त्र 1/47-56 *110* अध्यात्म योग साधना
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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