SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 161
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तथा चेष्टारूप वृत्तियों का अपुनर्भावरूप से जो निरोध-आत्यन्तिक क्षय-समूल नाश होता है, उसका नाम वृत्तिसंक्षययोग है।' आत्मा स्वभाव से निस्तरंग सागर के समान निश्चल है। जैसे वायु के सम्पर्क से उसमें तरंगें उठती हैं. उसी प्रकार आत्मा में भी मन और शरीर के संयोग से संकल्प-विकल्प तथा अनेक प्रकार की चेष्टारूप वृत्तियाँ उठती रहती हैं। इनमें विकल्परूप वृत्तियाँ मनोद्रव्य के संयोग से उत्पन्न होती हैं और चेष्टारूप वृत्तियाँ शरीर-सम्बन्ध से उत्पन्न होती हैं। इन विकल्प और चेष्टारूप वृत्तियों का समूल नाश ही वृत्तिसंक्षययोग है। यह वृत्तिसंक्षय नाम का योग आत्मा को कैवल्य (केवलज्ञान-दर्शन) की प्राप्ति के समय तथा निर्वाण प्राप्ति के समय प्राप्त होता है। यद्यपि वृत्ति-निरोध अन्य ध्यान आदि की अवस्था में भी आत्मा प्राप्त करता है, किन्तु वह आंशिक होता है; सम्पूर्ण वृत्ति-क्षय इसी योग में प्राप्त होता है। कैवल्य अवस्था में भी तेरहवें गुणस्थान (सयोगकेवली दशा) में विकल्परूप वृत्तियों का समूल नाश हो जाता है और चौदहवें गुणस्थान (अयोगकेवली दशा) में चेष्टारूप वृत्तियों का आत्यन्तिक क्षय होता है। इस प्रकार वृत्तिसंक्षययोग के कैवल्य प्राप्ति, शैलेशीकरण और मोक्ष लाभ-ये तीन फल हैं। __ महर्षि पतंजलि द्वारा वर्णित सम्प्रज्ञातयोग-जिसमें राजस एवं तामस वृत्तियों का सर्वथा निरोध होकर केवल सत्त्वप्रधान प्रज्ञा-प्रकर्षरूप वृत्ति का उदय होता है, इन चार भेदों (अध्यात्म, भावना, ध्यान और समता) में 1. (क) अन्यसंयोगवृत्तींना, यो निरोधस्तथा तथा। अपुनर्भावरूपेण स तु तत्संक्षयो मतः।। -योगबिन्दु 366 (ख) विकल्पस्पन्दरूपाणां, वृत्तीनामन्यजन्मनाम्। अपुनर्भावतो रोधः प्रोच्यते वृत्तिसंक्षयः।। -उपाध्याय यशोविजयकृत योगभेदद्वात्रिंशिका 25 2 योगबिन्दु व्याख्या श्लोक 431। 3. . शैलेशो मेरुस्तस्येव स्थिरता सम्पाद्यावस्था सा शैलेशी। -अभयदेवसूरि-औपपातिक सूत्र सिद्धाधिकार अर्थात्-योगों-मन-वचन-काया के व्यापारों के निरोध से मेरु के समान प्राप्त होने वाली पूर्ण स्थिरता, शैलेशीकरण है। * जैन योग का स्वरूप * 89 *
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy