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________________ Note that the actual arising of the tremendous force of Kundalini may only be safely attempted under the expert guidance of a Master of occult science-otherwise Kundalini may act downwards and intensify both the desire-nature and activity of sexual organs. यही कारण है कि प्राचीन जैन योग ( आगम साहित्य तथा ईसा की दशवीं शताब्दी तक रचे गये जैन साहित्य) में कुण्डलिनी की कोई चर्चा प्राप्त नहीं होती। वास्तव में जैन योगियों ने कुण्डलिनी जागरण को अपना लक्ष्य कभी नहीं बनाया। इसका कारण यह है कि कुण्डलिनी शक्ति की जागरणा अधिकांश योगी भौतिक शक्तियों के प्रदर्शन, यश आदि की प्राप्ति के लिए करते हैं, जैसा कि गोशालक ने किया था। यह भी सर्वविदित है कि हठयोग, वामकौल तन्त्रयोग के कारण ही बंगाल में कितना व्यभिचार और भ्रष्टाचार फैला था । तब दूरदर्शी और भूत-भविष्य के ज्ञाता जैन योगी, चिन्तक तथा मनीषी कुण्डलिनी जागरण जैसी दुष्परिणामकारी ( दुष्परिणामकारी इसलिये कि जिन साधकों की वासनाएँ क्षय नहीं हुई हैं, वे इस महाशक्ति का दुरुपयोग अपनी वासना तृप्ति और स्वार्थ सिद्धि के लिए करते हैं ) शक्ति को प्राप्त करने का प्रयत्न कैसे करते ? यद्यपि उन्हें तेजोलेश्या शक्ति के रूप में कुण्डलिनी योग पूर्णतया ज्ञात था । आध्यात्मिक दृष्टि से जैन योग के भेद आध्यात्मिक दृष्टि से योग के बीज तथा विचार प्राचीन जैन आगमों में यत्र-तत्र प्राप्त होते हैं। आचार्य हरिभद्र सूरि ने अपने ग्रन्थ योगबिन्दु में • आध्यात्मिक योग का बहुत ही सुन्दर तरीके से क्रमबद्ध वर्णन प्रस्तुत किया है। वहाँ उन्होंने मोक्ष-प्राप्ति के अन्तरंग साधन को धर्म - व्यापार कहा है तथा उस धर्म - व्यापार को योग बतला कर उसके पाँच भेद किये हैं- (1) अध्यात्म, (2) भावना, (3) ध्यान, ( 4 ) समता और (5) वृत्तिसंक्षय ।' पातंजलयोग के संप्रज्ञात और असंप्रज्ञात नाम के दो योग इन्हीं पाँच भेदों के अन्तर्गत आ जाते हैं। 1. अध्यात्मं भावना ध्यानं', 'समता वृत्तिसंक्षयः । मोक्षेण योजनाद् योगः, एष श्रेष्ठो यथोत्तरम् ।। - योगबिन्दु 31 • जैन योग का स्वरूप 81
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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