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________________ सूक्ष्म बोध उसे स्थिरादृष्टि में प्राप्त हो ही जाता है, अतः वह इस स्थिति में (कान्तादृष्टि में) आत्मतत्त्वविषयक चिन्तन, मनन, निदिध्यासनमूलक मीमांसा करता है, आत्मविचारणा और सद्गुणविचारणा में तल्लीन रहता है। इसके फलस्वरूप उसकी आत्मा उत्कर्ष को प्राप्त होती है। उसका आत्महित-श्रेयस् उत्तरोत्तर सधता जाता है। ___(7) प्रभादृष्टि'-प्रभादृष्टि में प्रायशः ध्यान की प्रमुखता है। इस दृष्टि से सम्पन्न योगी प्रायः ध्याननिरत रहता है अर्थात् इसमें अष्टांग योग का सातवाँ अंग ध्यान-ध्येय में एकतानता-चित्तवृत्ति का एकाग्र भाव सफल होता है। ध्यान-सोपानस्थित योगी यहाँ ऐसी स्थिति प्राप्त कर लेता है कि राग, द्वेष, मोहरूप-त्रिदोषजन्य भावरोग यहाँ उसके लिए बाधक नहीं बन पाते। वह तत्त्वानुभूति का गहरा रस-अनुभव प्राप्त कर लेता है और सत्प्रवृत्तियों की ओर उसका सहज ही झुकाव हो जाता है। . इस दृष्टि में स्थित साधक असंगानुष्ठान (सभी प्रकार के संग-आसक्ति या संस्पर्शरहित विशुद्ध आत्मानुचरण) को शीघ्र साध लेता है। यह दृष्टि परम वीतराग भाव रूप स्थिति को प्राप्त कराने वाली है। इस दृष्टि वाले योगी की अन्तर्वृत्तियाँ प्रशान्तरसवाही हो जाती हैं। ____(8) परादृष्टि'–यह योग की आठवीं और अन्तिम दृष्टि है। यह परा नाम की योगदृष्टि समाधिनिष्ठ होती है। यहाँ अष्टांग योग का आठवाँ अंग 'समाधि'4 (चित्त का ध्येयाकार रूप में परिणमन) सध जाता है। इसमें आसंग दोष (किसी एक ही योगक्रिया में आसक्ति) नहीं रहता। ___ इस दृष्टि में संस्थित योगी शुद्ध आत्मतत्त्व, आत्मस्वरूप जिस प्रकार अनुभूति में आए वैसी प्रवृत्ति या आचरण में सहज रूप से गतिमान रहता है। उसके चित्त में किसी भी प्रकार की प्रवृत्ति करने की इच्छा, कामना या वासना नहीं रहती है। उसका चित्त प्रवृत्ति से ऊपर उठा हुआ होता है। इस दृष्टि में स्थित साधक आचार अथवा कल्प मर्यादा से भी ऊपर उठा हुआ होता है। किसी भी प्रकार के परम्परागत आचरण के अनुसरण का वहाँ प्रयोजन भी नहीं रहता। -पातंजल योगसूत्र 3/2 1. योगदृष्टिसमुच्चय 170, 171, 177 2. तत्र प्रत्ययैकतानता ध्यानम्। 3. योगदृष्टिसमुच्चय 178-186 4 तदेवार्थमात्रनिर्भासं स्वरूपशून्यमिव समाधिः। -पातंजल योगसूत्र 3/3 *जैन योग का स्वरूप * 75*
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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