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________________ इस दृष्टि में स्थित साधक के हृदय में आत्महितकर प्रवृत्ति में अनुद्वेग, उत्साह तथा तत्त्वोन्मुखी जिज्ञासा उत्पन्न होती है। __ (3) बलादृष्टि'-बलादृष्टि में सुखासनयुक्त दृढ़ दर्शन-सद्बोध प्राप्त होता है, परम तत्त्व-श्रवण करने की तीव्र इच्छा. उत्पन्न होती है तथा योग साधना में चित्त-विक्षेप-दोष समाप्त हो जाता है। यहाँ पातंजल अष्टांग योग का तीसरा अंग 'आसन सधता है। सुखासन का अभिप्राय उस आसन से है, जिसमें योगी सुखपूर्वक शान्ति से, बैठ सके, उसके ध्यान में विक्षेप न हो और ध्यान में चित्त स्थिर रहे। बलादृष्टि के आ जाने पर साधक की तृष्णा कम हो जाती है। उसके जीवन में उतावलापन कम होकर स्थिरता बढ़ जाती है। वह अपने शुभ समारम्भमय उपक्रम में कुशलता प्राप्त करता जाता है; अपने अन्तर हृदय में उल्लास अनुभव करने लगता है और तत्त्वजिज्ञासा प्रबल होती है फलतः वह महान आत्मा अभ्युदय में संलग्न होता है। (4) दीप्रादृष्टि'-यहाँ प्राणायाम' सधता है। यहाँ अन्ततम में ऐसे 1. योगदृष्टिसमुच्चय, 49-56 2. स्थिरसुखमासनम्। -पातंजल योगसूत्र 2/46 3... योगदृष्टिसमुच्चय, 57-58 तस्मिन् सति श्वासप्रश्वासयोर्गतिविच्छेदः प्राणायामः। -पातंजल योगसूत्र 2/49 विशेष-पातंजल योगसूत्र के समान जैन आचार्यों ने प्राणायाम को केवल श्वास-प्रश्वास-नियमन तक ही सीमित नहीं रखा है, वरन् उस पर गहराई से चिन्तन किया है। श्वास-प्रश्वासनिरोध या नियमन तो प्राणायाम का केवल भौतिक रूप है, केवल मात्र बाहरी। जैन आचार्यों ने प्राणायाम को केवल रेचक (श्वास को बाहर निकालना), पूरक (भीतर खींचना) और कुम्भक (अन्दर रोके रखना)-इतना नहीं माना, वरन् इसका अध्यात्मपरक रूप भी बताया है। रेचक (बाह्यभाव आत्म-विरोधी या परभावों को बाहर निकालना), पूरक (अन्तरात्मभाव-आत्मस्वरूपानुप्रत्यय को भीतर भरना) तथा कुम्भक (अन्तर्तम को आत्मचिन्तन, आत्मगुणों से आपूर्ण करना तथा उन भावों को स्थिर किये रहना)-यह भाव-प्राणायाम है। इस अध्यात्मपरक भाव प्राणायाम का मोक्षमार्ग में अत्यधिक महत्व है। इस भाव प्राणायाम के बिना मुक्ति प्राप्त नहीं हो सकती। श्वासप्राणायाम से शरीर एवं चित्त की स्थिरता बढ़ती है और इस भाव-प्राणायाम से मन की निर्मलता तथा विशिष्ट आत्मानुभूति होती है। *72 * अध्यात्म योग साधना *
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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