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________________ मध्वाचार्य' ने सुदृढ़ स्नेह को भक्ति बताया है। ब्रह्मसूत्रभाष्य में कहा गया है कि महत् बुद्धि भक्ति है, जो स्नेह से परिपूरित होती है, तथा यही जीव को सुख देने वाली है। श्री जयतीर्थ मुनीन्द्र ने भक्ति का लक्षण बताते हुये कहा है कि-अपरिमित अनवद्य कल्याण गुणों के ज्ञान से उत्पन्न हुए अपने समस्त सम्बन्धी जनों तथा पदार्थों से ही क्या, प्राणों से भी कई गुना अधिक, हजारों विघ्न आने पर भी न टूटने वाले, अत्यधिक सुदृढ़ गंगा प्रवाह के समान अखण्ड प्रेम के प्रवाह को भक्ति कहते हैं। भक्ति के नौ प्रकार माने गये हैं-(1) श्रवण, (2) कीर्तन, (3) स्मरण, (4) पादसेवा, (5) अर्चन, (6) वन्दन, (7) दास्य, (8) सख्य और (9) आत्मनिवेदन। इस नौ प्रकार की भक्ति द्वारा साधक अपने इष्टदेव की अर्चना करता है। भक्तियोग में साधक की योग्यता तथा इष्ट में लीनता के आधार पर दो श्रेणी हो जाती हैं-पक्व भक्ति तथा अपक्व भक्ति। भक्ति द्वारा मोक्ष प्राप्ति के उपायों के रूप में भक्तियोग में चार सोपानों की चर्चा की गई है। प्रारम्भ में साधक अथवा भक्त की भक्ति अपक्व दशा में होती है। उसमें आस्तिक्य बुद्धि होती है, वह गुरु के पास भी जाता है, गुरु सेवा-भक्ति भी करता है, गुरु-मुख से सामान्यतया तत्वों का श्रवण-मनन भी करता है, किन्तु इस दशा में उसकी भक्ति अनन्य नहीं होती। दूसरे सोपान में तत्वों के प्रति उसकी रुचि बढ़ती है, वह तत्वों का निश्चय भी करता है; किन्तु भक्ति की अनन्यता में कमी रह जाती है। तीसरे सोपान पर पग रखते ही उसकी भक्ति अनन्य हो जाती है, वह इष्टदेव का ध्यान करने लगता है और उसे अपने इष्टदेव का साक्षात्कार भी हो जाता है। चौथे सोपान में उसकी अनन्यता पराकाष्ठा को पहुँच जाती है और भगवकृपा से उसे मुक्ति अथवा भगवान का धाम प्राप्त हो जाता है। 1. माहात्म्यज्ञानपूर्वस्तु सुदृढः सर्वतोऽधिकः। स्नेहो भक्तिरिति प्रोक्तः तया मुक्तिर्न चान्यथा।। -श्रीमन्महाभारत तात्पर्य निर्णय 2 महत्त्वबुद्धिर्भक्तिस्तु स्नेहपूर्वाभिधीयते। तथैव व्यज्यते सम्यग् जीवरूपं सुखादिकम्।। -ब्रह्मसूत्रभाष्य 3. तत्र भक्तिर्नाम निरविधकानन्तोनवद्यकल्याणगुणत्वज्ञानपूर्वकः स्वस्वात्मात्मीय समस्त वस्तुभ्योऽनेकगुणाधिकोऽन्तराय सहस्रेणाप्य प्रतिबद्धो निरन्तर प्रेम प्रवाहः। -श्रीमन्यायसुधा * योग के विविध रूप और साधना पद्धति *35*
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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