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________________ इस योग का मूल लक्ष्य साधक को अभिमान - अर्थात् मैं किसी कार्य को करता हूँ-इस अहं - कर्तृत्व भाव से मुक्त करना है। राजयोग राजयोग का अभिप्राय है - साधक द्वारा अपनी समस्त बाह्य एवं आन्तरिक प्रवृत्तियों को अनुशासित करना। इसके सम्बन्ध में गीता का यह श्लोक प्रचलित है युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु । . युक्तस्वप्नावबोधस्य योगोभवति दुःखहा ॥ - युक्त - उचित अथवा अनुशासित आहार, विहार, चेष्टा, कर्म, निद्रा एवं जागरण - इस प्रकार का योग सभी दुःखों का अन्त करने वाला है। इस प्रकार इस योग में साधक अपनी इन्द्रियों और मन को अनुशासित करके परमात्म तत्त्व में लगाता है। हठयोग हठयोग का उद्देश्य शारीरिक तथा मानसिक उन्नति है। इसकी मान्यता है कि सुदृढ़ और स्वस्थ शारीरिक अवस्था हो तभी इच्छाओं पर नियन्त्रण किया जा सकता है और मन शान्त हो सकता है, जो कि योग साधना के लिए अति आवश्यक है। हठयोग सिद्धान्त की चर्चा योगतत्त्वोपनिषद् तथा शांडिल्योपनिषद् में प्राप्त होती है। हठयोग के आदिप्रवर्तक शिव माने जाते हैं। ' हठयोग का अभिप्राय है - सूर्य - चन्द्र, ईड़ा - पिंगला, प्राण- अपान का मिलन। 'ह' का अभिप्राय है- सूर्य और 'ठ' से अभिप्राय चन्द्र है। इस प्रकार 'हठ' का अर्थ हठयोग में सूर्य-चन्द्र संयोग' माना गया है। षट्कर्म, प्राणायाम, आसन, मुद्रा, प्रत्याहार, ध्यान और समाधि - ये हठयोग के सात अंग हैं । किन्तु इनमें से हठयोग की प्रक्रियाओं में आसन, मुद्रा और प्राणायाम का विशेष महत्व दिखाई देता है। 1. 2. 3. 4. हठयोग प्रदीपिका 1/1. हठयोग प्रदीपिका 1/1; 3/5. हठयोग प्रदीपिका 2/22. घेरण्ड संहिता 1 / 10-11 . * 32 अध्यात्म योग साधना
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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