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________________ योग के विविध रुप और साधना पद्धति - - - प्राचीन काल से ही 'योग' के प्रति जनता का आदर एवं आकर्षण रहा है। इसका एक कारण यह भी था कि 'योगविद्या' एक रहस्यमयी गुप्त विद्या मानी जाती थी और योगी को लोग बहुत बड़ा तपस्वी, चमत्कारी और पहुँचे हुए साधक की दृष्टि से देखते थे। योग सामान्य आदमी के लिए कठोर मार्ग था, इसलिये श्रद्धा का विषय बन गया। इस लोक-श्रद्धा का लाभ उठाकर विविध धर्म सम्प्रदाय अपने को योग से जोड़ने में लग गये। अपनी विचारधारा एवं आचार परम्परा को 'योग मार्ग' की संज्ञा देकर गौरव अनुभव करने लगे। इसका परिणाम यह हुआ कि जितने सम्प्रदाय थे, उतने ही योग मार्ग बन गये और प्रत्येक सम्प्रदाय का नेता स्वयं अपने को, योगी, योगेश्वर अथवा योगिराज कहलाने में गौरव अनुभव करता। उनकी साधना विधि, विचार सरणि एक स्वतन्त्र योग मार्ग बन गई। __ प्रस्तुत प्रसंग में हम इन विभिन्न साधना विधियों, विचार सरणियों का एक संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत कर रहे हैं, जो 'योग' संज्ञा से प्रसिद्ध हुए और विविध प्रकार की योग विधियों की प्रस्तावना कर सके। गीतोक्तयोग ___यों तो गीता योगशास्त्र के नाम से भी प्रसिद्ध है किन्तु उसमें वैसे ज्ञानयोग, कर्मयोग और भक्तियोग का भी सुन्दर समन्वय मिलता है। इनके अतिरिक्त इसमें समत्वयोग और ध्यानयोग का भी वर्णन है। इन योगों के तीन मुख्य उद्देश्य माने गये हैं-(1) जीवात्मा का साक्षात्कार, (2) विश्वात्मा का साक्षात्कार और (3) ईश्वर का साक्षात्कार। ___ गीता के प्रत्येक अध्याय के अन्त में 'ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवत्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुन सम्वादे.... .... .... ...।' यह 1. कल्याण, साधनांक, वर्ष 15, अंक 1, पृष्ठ 575 । * 30 • अध्यात्म योग साधना .
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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