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________________ साधक को संकेत करता है कि वह पाप-कषाय आदि भावों का रेचन करे, शुद्ध भावों का कुम्भक करे और सद्गुणों का पूरण करे। . संवरयोग और निर्जरायोग इसकी ऐसी विशिष्ट अवधारणाएँ हैं जो अन्यत्र प्राप्त नहीं होती। मन-वचन-काय की एकाग्रता साधक को आत्मा के सन्मुख कर देती है और साधक आत्मिक आनन्द में डूब जाता है। जैन योग आलम्बन में व्यक्त के साथ अव्यक्त को देखने की प्रेरणा देता है। यदि योग के प्रकारों की दृष्टि से देखें तो इसे राजयोग कह सकते हैं; क्योंकि इसमें भक्तियोग, ज्ञानयोग और कर्मयोग का सुन्दर, उचित और सन्तुलित समन्वय है। ००० * योग का प्रारम्भ *29*
SR No.002471
Book TitleAdhyatma Yog Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages512
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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