SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 95
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगमज्ञान की आधारशिला : पच्चीस बोल * ८१ * - - - - - - - - - - - - - - - - - - - चौथा विषय है रस। यह रसनेन्द्रिय का विषय है। क्योंकि रस का संवेदन रसना से होता है। रसना या जीभ बाह्य द्रव्येन्द्रिय तरल पदार्थ या लार मिश्रित पदार्थ के सम्पर्क से जब उत्तेजित हो उठती है तब वह अपने ज्ञान तन्तुओं द्वारा जीव को रस संवेदना करती है। यह विषय भी पौद्गलिक है। यह पाँच प्रकार का है। यथा-(१) तिक्त या तीक्ष्ण, (२) कटु, (३) कषैला, (४) अम्ल, (५) मधुर। जैसे सौंठ आदि का रस तिक्त या तीक्ष्ण होता है वैसे नीम आदि का कटु, हरड़ आदि का कषैला, इमली आदि का अम्लीय तथा चीनी आदि का रस मधुर होता है। __ पाँचवाँ विषय है स्पर्श। यह स्पर्शनेन्द्रिय का विषय है एवं पौद्गलिक है। इसके आठ भेद हैं-(१) कर्कश, (२) मृदु, (३) लघु, (४) गुरु, (५) शीत, (६) उष्ण, (७) स्निग्ध, (८) रूक्ष। इनमें शीत, उष्ण, स्निग्ध व रूक्ष तो मूल हैं तथा कर्कश, मृदु, लघु व गुरु उनकी बहुलता से बनते हैं। जैसे रूक्ष की बहुलता से लघु, स्निग्ध की बहुलता से गुरु, शीत और स्निग्ध की बहुलता से मृदु तथा उष्ण और रूक्ष की बहुलता से कर्कश स्पर्श बनता है। बाद वाले आपेक्षिक होते हैं। उदाहरण के लिए, पत्थर गुरु है, दीपशिखा लघु, हवा गुरु-लघु है और आकाश अगुरु-लघु है परन्तु निश्चय दृष्टि से न तो कोई पदार्थ या द्रव्य सर्वथा लघु है और न सर्वथा गुरु है। ___ उष्ण स्पर्श मृदुता व पाक करने वाला, शीत स्पर्श निर्मलता व स्तम्भित करने वाला होता है। स्निग्ध संयोग होने का और रूक्ष संयोग न होने का कारण है। लघु ऊर्ध्वगमन व तिर्यक् गमन का और गुरु अधोगमन का कारण है तथा मृदु नमन का और कर्कश अनमन का कारण है। ___ पाँचों इन्द्रियों के तेईस विषयों के कुल दो सौ चालीस विकारों का उल्लेख है, जिनमें श्रोत्रेन्द्रिय के तीन विषयों के बारह विकार हैं। छह विकार राग पर और छह द्वेष पर आधारित हैं। इसी प्रकार चक्षुरिन्द्रिय के पाँच विषयों के साठ विकारों का उल्लेख है। यथा-काला आदि पाँच वर्ण होने से ये पाँच सचित्त, पाँच अचित्त और पाँच मिश्र। इस प्रकार पन्द्रह हुए। ये पन्द्रह शुभ और पन्द्रह ही अशुभ कुल तीस हुए। इन तीस पर राग और तीस पर द्वेष होने से कुल साठ विकार हुए। इसी प्रकार घ्राणेन्द्रिय के दो विषयों के बारह विकार, रसनेन्द्रिय के पाँच विषयों के साठ विकार, स्पर्शनेन्द्रिय के आठ विषयों के छियानवे विकारों का उल्लेख हुआ है। इस प्रकार इन पाँचों इन्द्रियों के तेईस
SR No.002470
Book TitleAgam Gyan Ki Adharshila Pacchis Bol
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarunmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy