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* ८० * बारहवाँ बोल : पाँच इन्द्रियों के तेईस विषय
ही जाने जा सकते हैं। स्थूल परिणाम वाले पुद्गल-स्कन्ध इन्द्रिय द्वारा जाने जाते हैं, सूक्ष्म परिणाम वाले नहीं। यदि ऐसा मान लिया जाये तो जो स्थूल हैं वे
आँखों से दिखाई देते हैं और जो सूक्ष्म हैं वे यन्त्रों के माध्यम से दिखाई देते हैं पर यथार्थतः ऐसा है नहीं। दृष्टि में आने वाले सभी पदार्थ चाहे वे आँखों से दिखाई दें अथवा यन्त्रों आदि बाह्य साधनों से दिखाई दें, वे सब स्थूल की कोटि में आते हैं। यदि यह स्थूल है तो फिर पर्याप्त सहयोग के बिना दीखता क्यों नहीं? इसका भी समाधान यही है कि जब तक इन्द्रिय को बाह्य सामग्री की पूर्णता प्राप्त नहीं होती तब तक वह अपने विषय को पूरी तरह से नहीं जान सकती।
पाँचों इन्द्रियों के पाँचों विषयों के कुल तेईस प्रकार हैं।
'शब्द' श्रोत्रेन्द्रिय का विषय है। शब्द के परमाणु सम्पूर्ण लोक में व्याप्त हैं। इसका जन्म अनन्तानन्त पुद्गल स्कन्धों से होता है। इसके जन्म के दो कारण हैं-एक संघात और दूसरा भेद। शब्द के तीन प्रकार हैं
(१) जीव शब्द (सचित्त शब्द), (२) अजीव शब्द (अचित्त शब्द), (३) मिश्र शब्द।
जीवों द्वारा बोले जाने वाले शब्द सचित्त या जीव शब्द कहलाते हैं, जैसेमनुष्य, पशु-पक्षी के शब्द। अजीव शब्द जड़ पदार्थों से निःसृत होते हैं, जैसेटूटती हुई लकड़ी का शब्द। मिश्र शब्द सचित्त और अचित्त शब्दों के संयोग से होता है, जैसे-बाजे-बाँसुरी का शब्द।
दूसरा विषय है वर्ण या रूप। यह चक्षुरिन्द्रिय का विषय है। वर्ण स्वयं पुद्गल नहीं है किन्तु पुद्गल का गुण है। यह पाँच प्रकार का है-(१) काला, (२) नीला, (३) पीला, (४) लाल, (५) श्वेत। शेष सब वर्ण रूप इन्हीं के सम्मिश्रण के परिणाम हैं। जैसे-काला वर्ण श्वेत वर्ण में मिला देने पर कापोत वर्ण हो जाता है। इसी तरह अनेक वर्ण उत्पन्न हो सकते हैं। __ तीसरा विषय है गंध। यह घ्राणेन्द्रिय का विषय है। नासिका बाह्य द्रव्येन्द्रिय के द्वारा सूंघने का अनुभव जीव को होता है। जीव को गंध का संवेदन घ्राण द्वारा ही सम्भव है। यदि नासिका के दोनों पुट बन्द कर दिये जायें तो गंध की अनुभूति नहीं हो सकती। गंध भी पौद्गलिक है। इसके दो भेद हैं-एक सुगन्ध और दूसरा दुर्गन्ध।