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आगमज्ञान की आधारशिला : पच्चीस बोल * ७९ *
उसकी गंध का, आँख देखकर उसके रंग का, कान शब्दों के माध्यम से उसकी अवधि आदि का बोध कराते हैं। इस प्रकार इस एक लड्डू में उक्त पाँचों विषयों का स्थान अलग-अलग नहीं है अपितु ये सभी उसके सब भागों में एक साथ रहते हैं। क्योंकि ये सभी एक ही द्रव्य की अविभाज्य पर्याय हैं। इनका विभाजन केवल बुद्धि के द्वारा ही सम्भव है जो इन्द्रियों से होता है। इन्द्रियाँ अपने ग्राह्य विषय के अतिरिक्त अन्य विषय को जानने में सर्वथा असमर्थ व असक्षम हैं। इस प्रकार पाँचों इन्द्रियों के पाँच विषय पृथक्-पृथक् हैं।
ये पाँचों जब सहचरित हैं तब किन्हीं-किन्हीं पदार्थों में इन पाँचों विषयों की जानकारी नहीं हो पाती, केवल एक-दो का ही ज्ञान हो पाता है, ऐसा क्यों है? जैसे सूर्य आदि की प्रभा का रूप तो अनुभव होता है पर स्पर्श, गंध, रस आदि नहीं। इसी प्रकार पुष्पादि से अमिश्रित वायु का स्पर्श मालूम पड़ता है पर रस, गंध, वर्ण आदि नहीं। इसका समाधान यह है कि जगत् के प्रत्येक पदार्थ में स्पर्शादि ये सभी पर्याय होती हैं पर जो पर्याय उत्कट होती है वही इन्द्रियग्राह्य होती है। जगत् के प्रत्येक पदार्थ में पर्यायों की उत्कटता और अनुत्कटता एक-सी नहीं होती है अपितु भिन्न-भिन्न होती है। किसी पदार्थ में स्पर्श आदि पाँचों पर्याय उत्कटता के साथ अभिव्यक्त हैं और किसी में एक-दो आदि। शेष पर्याय अनुत्कट अवस्था में होने के कारण इन्द्रियग्राह्य नहीं हैं परन्तु ये सभी पर्याय होते अवश्य हैं। इन्द्रियग्राह्य शक्ति सभी जीवों में एक-सी नहीं होती है यहाँ तक कि एक ही जाति से सम्बन्ध रखने वाले सभी जीवों में इन्द्रियग्राह्य शक्ति विविध प्रकार की देखी जा सकती है अस्तु स्पर्श आदि की उत्कटता और अनुत्कटता इन्द्रियग्राह्य शक्ति की तरतमता पर निर्भर करती है।
संसार के सभी पौद्गलिक या मूर्त पदार्थ इन्द्रियगम्य हों या इन्द्रियों द्वारा जाने जा सकते हों, ऐसा कोई जरूरी नहीं है। जैसे परमाणु एक मूर्त पदार्थ है तो इसे इन्द्रियगम्य होना चाहिए पर परमाणु इन्द्रियगम्य नहीं है। अनन्त परमाणु मिलकर एक स्कन्ध का रूप धारण करते हैं तो भी जब तक सूक्ष्म परिणाम की निवृत्ति और स्थूल परिणाम की प्राप्ति नहीं होती, तब तक वह भी इन्द्रिय द्वारा नहीं जाना जा सकता है। जितने भी पदार्थ दिखाई देते हैं वे सब मूर्त और अनन्त प्रदेशी स्कन्ध हैं। सूक्ष्मातिसूक्ष्म यंत्रों से जो दिखाई देते हैं, वे भी अनन्त प्रदेशी स्कन्ध हैं। परमाणु आदि प्रत्यक्ष ज्ञान के बिना दिखाई नहीं दे सकते। शब्द आदि जितने भी इन्द्रिय विषय हैं वे सभी अनन्त प्रदेशी स्कन्ध हैं। अतः इन्द्रियों द्वारा