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________________ * ७२ * ग्यारहवाँ बोल : गुणस्थान चौदह - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - है। उसमें आत्मिक शक्तियों का प्रकाश अत्यन्त मंद होता है किन्तु ज्यों-ज्यों उसमें मोह कम होता जाता है त्यों-त्यों उसमें व्याप्त आत्मिक शक्तियाँ प्रकाशित होती जाती हैं और चौदहवें गुणस्थान तक आते-आते जीव मोह से पूर्ण मुक्त होता हुआ क्षायिक सम्यक्त्व को धारण कर परम विशुद्ध हो जाता है, यानी आत्मा से परमात्मा बन जाता है। इस प्रकार जीव का पहला गुणस्थान या पहली अवस्था आत्मिक गुणों की अपेक्षा से निकृष्टतम है और अन्तिम अवस्था है उत्कृष्टतम। चौदह गुणस्थानों का क्रमशः वर्णन इस प्रकार है(१) मिथ्यादृष्टि गुणस्थान ___यह जीव का पहला गुणस्थान है। इसमें जीव का श्रद्धान-विश्वास विपरीत होता है। जिस प्रकार पित्त ज्वर वाले रोगी को मीठा अच्छा नहीं लगता है उसी प्रकार इस स्थान वाले जीव को तत्त्वों के प्रति अरुचि होती है। इस स्थान के जीव अज्ञानी, असत्यवादी, अंध-विश्वासी, मिथ्यात्व को पूजने वाले, मोहग्रन्थि से जकड़े हुए विषय-कषायों में ही लिप्त रहते हुए अनन्त आध्यात्मिक सुख से वञ्चित रहते हैं। संसार के अधिकांश जीव इसी अवस्था में अपना जीवन यापन करते हैं। (२) सास्वादन सम्यक् दृष्टि गुणस्थान यह जीव का दूसरा गुणस्थान है। इसमें अनन्तानुबंधी कषाय का उदय रहता है जिसके कारण जीव सम्यक्त्व से विमुख रहता हुआ मिथ्यात्व की ओर झुका होता है। इसमें सम्यक्त्व का अंश किंचित् मात्र ही रहता है। इस गुणस्थान का काल छह आवलिका और सात समय मात्र है। इसके बाद जीव निश्चित रूप से पहले गुणस्थान में पहुँच जाता है। (३) सम्यक् मिथ्यादृष्टि (मिश्र) गुणस्थान ___ यह तीसरा गुणस्थान है। इसमें जीव को सम्यक्त्व और मिथ्यात्व का मिलाजुला स्वाद रहता है। इसमें जीव के परिणाम मिश्र (शुद्ध-अशुद्ध) होते हैं। इसमें जीवों की दृष्टि तत्त्वों के प्रति पूर्णतः मिथ्या नहीं होती अपितु संदिग्ध होती है। (४) अविरत सम्यक् दृष्टि गुणस्थान यह चौथा गुणस्थान है। इसमें जीव की श्रद्धा शुद्ध अर्थात् सम्यक्त्व से अनुप्राणित रहती है। सच्चे देव, गुरु, धर्म पर आस्था बनी रहती है किन्तु आचरण
SR No.002470
Book TitleAgam Gyan Ki Adharshila Pacchis Bol
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarunmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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