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आगमज्ञान की आधारशिला : पच्चीस बोल * ६५ *
(१) हास्य, (२) रति, (३) अरति, (४) शोक, (५) भय, (६) जुगुप्सा, (७) स्त्रीवेद, (८) पुरुषवेद,
(९) नपुंसकवेद। (५) आयुष्य कर्म - यह कर्म जीव को किसी एक पर्याय में रोके रखता है। इस कर्म के कारण ही जीव भव धारण करता है। इस कर्म के क्षय से अजरता-अमरता की अनन्तकालीन स्थिति प्राप्त होती है। इस कर्म की तुलना बन्दीगृह या कारागार से की गई है। इस कर्म के चार भेद हैं
(१) नरकायु, (२) तिर्यञ्चायु, (३) मनुष्यायु,
(४) देवायु। - प्रत्येक आयु के चार कारण निम्न प्रकार हैंनरकायुबंध के कारण
(१) महारम्भ, (२) महापरिग्रह, (३) पंचेन्द्रिय वध,
(४) माँस-मदिरा सेवन। तिर्यवायुबंध के कारण
(१) मायाचारी करना, (२) गूढ कपट करना, यानी एक कपट को ढकने के लिए दूसरा छल करना,