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________________ * ६४ * दसवाँ बोल : कर्म आठ के दो प्रकार के कारण हैं-एक सातावेदनीय कर्मबंध का कारण और दूसरा असातावेदनीय कर्मबंध का कारण। पहले प्रकार के कारण इस प्रकार से हैं (१) सभी जीवों को अपनी असत् प्रवृत्ति से दुःखं न पहुँचाना, (२) सभी जीवों को हीन न मानना, (३) सभी जीवों के शरीर को हानि पहुँचाने वाले शोक आदि पैदा न करना, (४) सभी जीवों को न सताना और न लाठी आदि से प्रहार करना, (५) सभी जीवों को परितापित न करना। इसी प्रकार उपर्युक्त पाँच बातों को करने से असातावेदनीय कर्म के बंध का कारण माना गया है। (४) मोहनीय कर्म ___ यह आत्मा के सम्यक्त्व और चारित्र गुण का घात करता है। इस कर्म के क्षय से परिपूर्ण सम्यक्त्व और चारित्र का उदय होता है। इसका स्वभाव मदिरा-जैसा है। इससे जीवों का तत्त्वों के प्रति श्रद्धान विपरीत होता है और जीव विषयभोगों में ही रमा रहता है। यह दो प्रकार का होता है-एक दर्शनमोहनीय और दूसरा चारित्रमोहनीय। दर्शनमोह आत्मा के श्रद्धान गुण का एवं चारित्रमोह चारित्र गुण का घात करता है। इन दोनों के भी अनेक भेद-प्रभेद हैं जिनमें दर्शनमोह के तीन और चारित्रमोह के नौ भेद हैं। इस प्रकार मोहनीय कर्म के कुल मिलाकर अट्ठाईस भेद हैं। इस कर्मबंध के अनेक कारण हैं (१) तीव्र क्रोध, (२) तीव्र मान, (३) तीव्र माया, (४) तीव्र लोभ, (५) तीव्र दर्शनमोह, (६) तीव्र चारित्रमोह, (७) तीव्र मिथ्यात्व। इसके साथ-साथ 'नोकषाय' (कषाय नहीं किन्तु कषाय में वृद्धि करने वाले) भी मोहनीय कर्म के कारण माने गये हैं। यथा
SR No.002470
Book TitleAgam Gyan Ki Adharshila Pacchis Bol
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarunmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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