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आगमज्ञान की आधारशिला : पच्चीस बोल * ५९ *
है, इसलिए वह ज्ञान है जबकि दर्शन का विषय निराकार है इसलिए मनःपर्यव दर्शन नहीं है।
जो सामान्य बोध नेत्रजन्य हो वह चक्षुःदर्शन है और जो नेत्र के अतिरिक्त अन्य किसी इन्द्रिय से या मन से सामान्य बोध हो, वह अचक्षुःदर्शन है। अवधिलब्धि से मूर्त पदार्थों का सामान्य बोध अवधिदर्शन तथा केवललब्धि से होने वाला समस्त पदार्थों का सामान्य बोध केवलदर्शन है। दोनों दर्शन क्रमशः अवधिज्ञान और केवलज्ञान के सहवर्ती हैं। मन में यह शंका उठ सकती है कि चक्षुःदर्शन और अचक्षुःदर्शन न कहकर केवल इन्द्रियदर्शन क्यों नहीं कहा गया? इससे एक ही में पाँचों इन्द्रियों का समावेश हो जाता है और यदि यह अभिप्रेत नहीं था तो पाँचों इन्द्रियों के पाँच भेद क्यों नहीं किए गए? इसका समाधान यह है कि दर्शन की व्यवस्था वस्तु के सामान्य और विशेष इन दो स्वभावों के आधार पर हुई है। चक्षुःदर्शन यद्यपि सामान्य बोध है फिर भी अन्य इन्द्रियों की अपेक्षा वह अधिक विश्वस्त है। इसमें विशेषता की कुछ झलक आ जाती है, उसी को ध्यान में रखकर चक्षुःदर्शन को अन्य इन्द्रियों से भिन्न रखा गया है। ___ अवधिज्ञान और मनःपर्यवज्ञान दोनों ही सही पुद्गलों को ग्रहण करते हैं, किन्तु इनमें एक खास अन्तर है, अवधिज्ञानी सभी प्रकार के मूर्त पुद्गलों को जान लेता है, जबकि मनःपर्यवज्ञानी केवल संज्ञी जीवों के मनोगत भावों, विचारों को ही जानता है।
र: प्रज्ञापना पद
प्रश्नावली १. उपयोग से आप क्या समझते हैं? २. दर्शनोपयोग और ज्ञानोपयोग में क्या अन्तर है? ३. मतिज्ञान और श्रुतज्ञान को समझाते हुए इनके अन्तर को स्पष्ट कीजिए। ४. प्रत्यक्ष और परोक्षज्ञान से क्या अभिप्राय है? ५. मनःपर्यव को दर्शन क्यों नहीं माना गया? ६. क्या ज्ञान कुत्सित हो सकता है? यदि हाँ, तो कैसे? ७. चक्षुःदर्शन और अचक्षुःदर्शन न कहकर केवल इन्द्रियदर्शन क्यों नहीं कहा
गया?