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* ५८ * नवाँ बोल : उपयोग बारह
अज्ञान का अर्थ
इस बोल में ज्ञान के साथ-साथ अज्ञान शब्द भी आया है। यहाँ अज्ञान शब्द अभाव के लिए नहीं, कुत्सित के लिए है। ज्ञान और अज्ञान में मूल अन्तर सम्यक्त्व के सहभाव और असहभाव से है। अज्ञान को कुत्सित ज्ञान भी कहते हैं। ऐसा इसलिए है कि इसमें मिथ्यात्व का संयोग रहता है। मिथ्यात्व का अर्थ है-विपरीतता, मिथ्या। विपरीत ज्ञान अर्थात् वह ज्ञान जो मोक्ष की ओर न ले जाकर संसारोन्मुख है, वह ज्ञान अज्ञान है। जैसे नीच या दुष्ट व्यक्ति के सम्पर्क से उत्तम पुरुष भी नीच या दुष्ट हो जाता है उसी प्रकार ज्ञान निंदित या कुत्सित नहीं होता, पर मिथ्यात्व के अवलम्बन के कारण अज्ञान कहलाता है। इस प्रकार ज्ञान और अज्ञान में केवल पात्र का ही भेद है। यदि पात्र सम्यक्त्वी है तो उसका ज्ञान ज्ञान है और यदि वह मिथ्यात्व से युक्त है तो उसका ज्ञान अज्ञान है।
अज्ञान के तीन भेद हैं(१) मतिअज्ञान, (२) श्रुतअज्ञान, (३) विभंगज्ञान या अवधिअज्ञान।
अज्ञान कभी भी मनःपर्यव और केवलज्ञान के लिए प्रयुक्त नहीं हो सकता। क्योंकि ये दोनों ज्ञान विशिष्ट योगियों के होते हैं, मिथ्यात्वी के नहीं होते हैं। इस प्रकार ज्ञान के पाँच भेद और अज्ञान के तीनों भेदों का कारण सम्यक्त्व और मिथ्यात्व है। इन आठ प्रकार के ज्ञानों में आत्मा जब, जिस उपयोग में जानने की क्रिया करता है तब उसका उपयोग भी उसी प्रकार का हो जाता है।
उपयोग का दूसरा भेद है दर्शनोपयोग। यह अनाकार या निराकार उपयोग है। इसके चार भेद हैं
(१) चक्षुःदर्शन, (२) अचक्षुःदर्शन, (३) अवधिदर्शन, (४) केवलदर्शन।
इन चारों में मनःपर्यव को दर्शन में नहीं लिया गया है। इसका कारण यह है कि मनःपर्यवज्ञान में मन की विविध आकृतियों को जीव ज्ञान से पकड़ता