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आठवाँ बोल : योग पन्द्रह (मनोयोग, वचनयोग और काययोग का स्वरूप कथन)
चार मन के
(१) सत्य मनोयोग, (२) असत्य मनोयोग, (३) मिश्र मनोयोग,
(४) व्यवहार मनोयोग। चार वचन के
(१) सत्य वचनयोग, (२) असत्य वचनयोग, (३) मिश्र वचनयोग,
(४) व्यवहार वचनयोग। सात काय के
(१) औदारिक काययोग, (२) औदारिक मिश्र काययोग, (३) वैक्रिय काययोग, (४) वैक्रियक मिश्र काययोग, (५) आहारक काययोग, (६) आहारक मिश्र काययोग, (७) कार्मण काययोग।
'योग' शब्द अनेक अर्थों में व्यवहृत है। यथा-मिलन या संयोग, ध्यान, समाधि, यम, नियम आदि क्रियाएँ, साधना-पद्धति व आसनादि। चित्तवृत्तियों के निरोध को भी योग कहा गया है क्योंकि इसमें ध्याता का ध्येय के साथ संयोग रहता है, यानी ध्याता और ध्येय एकाकार हो जाते हैं किन्तु जैनदर्शन