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________________ *४६ * सातवाँ बोल : शरीर पाँच कार्मण शरीर से औदारिक शरीर के क्रम में शरीर की स्थूलता क्रमशः बढ़ती जाती है। यहाँ सूक्ष्मता का अभिप्राय इन्द्रियगोचर न होने से और पुद्गलों के सघन बंधन से है न कि परिमाण-विशेष से। वैज्ञानिक जगत् में सघन बंधन को घनत्व (Density-डेन्सिटी) कहते हैं। घनत्व अर्थात् सघन बन्धन से भार भी बढ़ता जाता है, जैसे-सुई, वस्त्र, काष्ठ, स्वर्ण और पारे को लें। इनमें उत्तरोत्तर एक-दूसरे में पुद्गल परमाणुओं का अर्थात् प्रदेशों का अधिक घना बन्धन है। इनमें एक-दूसरे से पुद्गल परमाणुओं की अधिकाधिक सघनता है। इसी कारण एक-दूसरे से क्रमशः भार भी अधिक होता जाता है। इसी प्रकार औदारिक शरीर की अपेक्षा वैक्रियक शरीर में असंख्यात गुणा प्रदेश हैं किन्तु वह सूक्ष्म है क्योंकि इसके प्रदेशों में सघनता औदारिक शरीर की अपेक्षा असंख्यात गुणी है। यही क्रम आहारक शरीर तक है। तैजस में अनन्त गुणा प्रदेश हैं और कार्मण शरीर में उससे भी अनन्त गुणा हैं। प्रदेशों की सघनता के कारण यह उत्तरोत्तर सूक्ष्म हैं। इनमें इन्द्रियों से अगोचरता बढ़ती जाती है। इस बात को और अधिक स्पष्ट करने के लिए हम भिण्डी की फली और हाथी के दाँत का उदाहरण लेते हैं। ये दोनों बराबर परिमाण वाले लेकर देखे जाएँ तो भिण्डी की रचना शिथिल होगी और हाथी के दाँत की रचना उससे निबिड़ ठोस, किन्तु दोनों का परिमाण बराबर होते हुए भी भिण्डी की अपेक्षा हाथी के दाँत का पौद्गलिक द्रव्य अधिक है। __ तैजस् और कार्मण शरीर अत्यन्त सूक्ष्म होने से इनकी स्थिति अप्रतिहत मानी गई है अर्थात् ये न किसी से रुकते हैं और न ही किसी को रोकते हैं। यह दोनों वज्र-पटलों को भी बिना रुकावट के भेदते चले जाते हैं, जैसेलोहपिण्ड में अग्नि। वैक्रियक और आहारक भी अपेक्षाकृत सूक्ष्म होने से ये भी बिना प्रतिघात के प्रवेश कर लेते हैं। ये अव्याबाध गति वाले तो होते हैं पर तैजस् कार्मण की तरह सारे लोक में व्याप्त नहीं होते हैं। जबकि यहाँ अप्रतिघात का तात्पर्य लोकान्त पर्यन्त अव्याहत गति से है। जैनागम में यह उल्लेख है कि एक शरीर किसी भी संसारी जीव के नहीं हो सकता है क्योंकि तैजस् और कार्मण ये दोनों शरीर कभी अलग नहीं होते। इसलिए कम से कम दो शरीर और अधिक से अधिक चार शरीर होते हैं। पाँच शरीर एक साथ एक समय किसी के नहीं हो सकते हैं क्योंकि वैक्रियक-लब्धि और आहारक-लब्धि का एक साथ प्रयोग सम्भव नहीं है। इसलिए आहारक और वैक्रियक शरीर एक जीव में एक साथ नहीं हो सकते। इसका कारण है
SR No.002470
Book TitleAgam Gyan Ki Adharshila Pacchis Bol
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarunmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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