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________________ आगमज्ञान की आधारशिला : पचीस बोल * ४५ * चौथे प्रकार का शरीर है तैजस् शरीर। इसे विद्युत् शरीर (Electric body-इलेक्ट्रिक बॉडी) भी कह सकते हैं। योग ग्रन्थों में यह प्राणमय शरीर के नाम से जाना जाता है। यह तैजस् पुद्गलों से बना हुआ है। तैजस् शरीर के कारण शरीर में तेज, ओज व ऊर्जा-उष्णता रहती है। यह शरीर आहार के पचन-पाचन अर्थात् परिपाक में निमित्त बनता है। शाप, वरदान आदि भी इसी का प्रयोग है। शरीर में तैजस् शक्ति के पाये जाने का कारण भी यही शरीर है। इस शरीर के अंगोपांग नहीं होते हैं। पूर्ववर्ती तीन शरीरों से यह अपेक्षाकृत सूक्ष्म शरीर होता है। पाँचवाँ शरीर है कार्मण शरीर। यह शरीर उपर्युक्त चारों प्रकार के शरीरों का कारण या निमित्त है। यानी सब शरीरों का बीज है। यह शरीर कार्मण वर्गणाओं से बना होता है अर्थात् इसका निर्माण ज्ञानावरणीय आदि आठ प्रकार के कर्म-पुद्गलों से होता है। यह कर्मस्वरूप है और कर्म ही सब कार्यों का निमित्त कारण और सबसे सूक्ष्म है। तैजस् सबका कारण नहीं है। वह तो सबके साथ अनादि सम्बन्ध रखकर भुक्त आहार के पाचन आदि में सहायक होता है। कार्मण और तैजस् में यही मुख्य अन्तर है। इन पाँचों शरीरों में तैजस् और कार्मण शरीर प्रत्येक संसारी जीव के साथ रहते हैं। इन दोनों शरीरों के छूटते ही आत्मा संसार के आवागमन से सर्वथा मुक्त हो जाता है। इन दोनों शरीरों का संसारी जीवों के साथ अनादिकालीन सम्बन्ध है। यह सम्बन्ध प्रवाह रूप में है, जैसे नदी का प्रवाह। नदी का जल प्रतिक्षण आगे बढ़ता जाता है और पिछला प्रतिक्षण आता रहता है किन्तु जल सदा बना रहता है। इस प्रकार इन शरीरों से संचित कर्म झरते रहते हैं और नवीन कर्म बँधते रहते हैं। ___औदारिक शरीर के बारे में कहा गया है कि यह शरीर जन्म-सिद्ध होता है जबकि वैक्रियक शरीर जन्म-सिद्ध और लब्धि-सिद्ध दोनों प्रकार का होता है और आहारक शरीर योग शक्ति से प्राप्त होता है। प्रथम तीन शरीरों औदारिक, वैक्रियक और आहारक-के अंग, उपांग और अंगोपांग होते हैं किन्तु तैजस् और कार्मण शरीर के कोई अंग-उपांग नहीं होते हैं क्योंकि ये दोनों शरीर अत्यन्त सूक्ष्म होते हैं। पाँचों शरीरों में सबसे स्थूल शरीर औदारिक शरीर और सबसे सूक्ष्म शरीर कार्मण शरीर है। औदारिक से कार्मण शरीर तक के क्रम में शरीर की स्थूलता क्रमशः घटती जाती है या कम होती जाती है और इसके विपरीत
SR No.002470
Book TitleAgam Gyan Ki Adharshila Pacchis Bol
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarunmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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