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________________ ४४ : सातवाँ बोल : शरीर पाँच (३) आहारक शरीर (Etheral body — ईथरल बॉडी), (४) तैजस् शरीर (A kind of body – ए काइण्ड ऑफ बॉडी), (५) कार्मण शरीर (Karmana body - कार्मण बॉडी) । उदार या स्थूल पुद्गलों से विनिर्मित शरीर औदारिक शरीर कहलाता है । चूँकि इसकी निष्पत्ति स्थूल पुद्गलों से होती है अतः यह चर्म चक्षुओं या स्थूल इन्द्रियों द्वारा देखा जा सकता है । स्थूल पुद्गलों से तात्पर्य है - हाड़, माँस, रक्त आदि का बना शरीर । औदारिक शरीर का स्वभाव है - गलना, सड़ना और विध्वंसना। औदारिक शरीर को जलाया जा सकता है, इसका छेदन - भेदन भी हो सकता है। इतना ही नहीं मोक्ष की उपलब्धि भी औदारिक शरीर के द्वारा ही सम्भव है जबकि ये विशेषताएँ वैक्रियक आदि शरीर में नहीं पायी जाती हैं। साधारण जीवों का शरीर स्थूल- असार पुद्गलों से बनता है जबकि तीर्थंकर आदि का शरीर प्रधान पुद्गलों वाला होता है । जो शरीर कभी छोटा-बड़ा, कभी पतला-मोटा, कभी हल्का- भारी, कभी एक - अनेक, कभी दिखाई देना तो कभी अदृश्य हो जाना आदि अनेक रूपों को धारण करने की शक्ति रखता है वह शरीर वैक्रियक कहलाता है। इसके माध्यम से जीवों में विशिष्ट और विविध क्रियाएँ होती रहती हैं। यह हाड़, माँस, रक्त आदि का बना नहीं होता है । मृत्यु के पश्चात् इस शरीर की अवस्थिति नहीं रहती है। आत्मा से अलग होते ही इस प्रकार का शरीर बिखर जाता है । वह कपूर की तरह उड़ जाता है जबकि औदारिक शरीर आत्मा से अलग हो जाने के बाद भी टिका रह सकता है । नारक और देवों में वैक्रियक शरीर होता है । मनुष्य और तिर्यंच में भी यह शरीर लब्धि से प्राप्त किया जा सकता है। आहारक शरीर आहारक - लब्धि से बना हुआ शरीर होता है। यह संयमी, तपस्वी, सम्यक् दृष्टिमुनि की एक विशेष प्रकार की लब्धि होती है । विशिष्ट योग शक्ति-सम्पन्न चौदह पूर्वों के धारक मुनि किसी विशिष्ट प्रयोजन से इस शरीर की संरचना करते हैं । इस शरीर का प्रमाण एक हाथ का होता है और आकार समचतुरस्र संस्थान है । यह श्वेत वर्ण का होता है और यह अत्यन्त विशुद्ध होता है । यह न किसी को व्याघात पहुँचाता है और न किसी भी पदार्थ से आहत होता है । यह शुभ पुद्गलों से निर्मित अत्यधिक मनोज्ञ होता है। इस प्रकार आहारक शरीर में कतिपय ऐसी विशेषताएँ होती हैं जो अन्य किसी शरीर में नहीं होती हैं ।
SR No.002470
Book TitleAgam Gyan Ki Adharshila Pacchis Bol
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarunmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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