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________________ सातवाँ बोल :शरीर पाँच (पाँच प्रकार के शरीर और उनका स्वरूप) (१) औदारिक शरीर, (२) वैक्रियक शरीर, (३) आहारक शरीर, (४) तैजसू शरीर, (५) कार्मण शरीर। ____ संसारी जीव की जितनी भी क्रियाएँ या प्रवृत्तियाँ होती हैं उन समस्त प्रवृत्तियों या क्रियाओं का माध्यम या साधन शरीर है क्योंकि मूलतः जीव तो अरूपी है। चूँकि वह कर्मों से आबद्ध है अतः उसे जन्म और मरण तो धारण करना ही होता है और इसके लिए उसे स्थूल या सूक्ष्म शरीर का आश्रय लेना ही पड़ता है। अस्तु, संसार के समस्त जीव सशरीरी होते हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि संसारी आत्माओं का निवास स्थान शरीर है। इस शरीर का निर्माण शरीर नामकर्म (A body type naam karma-ए बॉडी टाइप नामकर्म) के उदय से होता है। एक बात ध्यातव्य है कि यद्यपि संसारी आत्मा शरीर में रहती है तदपि शरीर और आत्मा एक नहीं है अपितु पृथक्-पृथक् ही है। __ आत्मा चैतन्य है, शाश्वत है और शरीर पुद्गलों से बना हुआ है अर्थात् पौद्गलिक है। वह बनता-बिगड़ता है, जन्म और मरण को प्राप्त होता रहता है। संसारी जीव को पौद्गलिक सुख-दुःख का जितना भी अनुभव होता है वह सब शरीर के माध्यम से ही होता है, यानी संसारी जीव अपने पूर्वबद्ध कर्मों को शरीर के द्वारा ही जिसमें वह अपना निवास-स्थल बनाये हुए है, भोगता है और इस शरीर के द्वारा ही वह तप व ध्यानादि के द्वारा अपने संचित कर्मों की निर्जरा कर मुक्त भी होता है। इस दृष्टि से संसारी जीवों के लिए शरीर को परम उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण माना गया है। जैनागम में शरीर के पाँच भेद निरूपित हैं। यथा- . (१) औदारिक शरीर (Gross body-ग्रॉस बॉडी), (२) वैक्रियक शरीर (A kind of body-ए काइण्ड ऑफ बॉडी),
SR No.002470
Book TitleAgam Gyan Ki Adharshila Pacchis Bol
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarunmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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