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________________ आगमज्ञान की आधारशिला : पच्चीस बोल * ३९ * है तो प्रायः यह कहा जाता है कि उसके प्राण निकल गए। प्राण के सन्दर्भ में यह जो बहुवचन लगा हुआ है उसका अभिप्राय भी यही है कि जीव के शरीर में जितने भी प्राण हैं उन सभी प्राणों के साथ आयुष्य प्राण का निकलना होता है। प्राण और पर्याप्ति में अन्तर . प्रत्येक जीव के लिए प्राण और पर्याप्ति ये दोनों ही परम उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण हैं। संसारी जीवों की पूर्ण विकसित अवस्था में प्राणों की संख्या दस तथा पर्याप्तियों की संख्या छह बतायी गई है। प्राण जीव की शक्ति-विशेष है जबकि पर्याप्ति जीव द्वारा ग्रहण की हुई पुद्गलों की शक्ति-विशेष है। प्राण यदि कार्य है तो पर्याप्ति उस कार्य में सहकारी कारण है। इस प्रकार प्राण और पर्याप्ति में जो सम्बन्ध है वह कार्य-कारण का सम्बन्ध है। कोई भी संसारी जीव अपनी मन, वचन, कायपूर्वक समस्त प्रवृत्तियों का सम्पादन बाह्य पुद्गल द्रव्यों की सहायता के बिना सम्पन्न नहीं कर सकता। जैसे कोई यन्त्र है वह बिना ईंधन आदि.बाह्य सामग्री की सहायता मिले अपनी क्रिया संचालित नहीं कर सकता। उसी प्रकार जीव जब तक शरीर में रहता है तब तक खाने-पीने, चलने-फिरने, बोलने, श्वसन, उत्सर्जन आदि क्रियाएँ होती रहती हैं। इन क्रियाओं के सम्पादन आदि के लिए पौद्गलिक शक्तियों की सहायता मिलना आवश्यक है। बिना इसके कोई भी क्रिया सम्पन्न नहीं हो सकती। प्राण की पर्याप्ति को जब कारण मान लिया गया है तो यह जानना भी आवश्यक है कि किस-किस प्राण की कौन-कौन-सी पर्याप्ति कारण है ? उसके लिए कहा गया है कि पाँचों इन्द्रिय बल प्राण का कारण है-इन्द्रिय पर्याप्ति, मन बल प्राण का कारण है मनः पर्याप्ति, वचन बल प्राण का कारण है भाषा पर्याप्ति, काय बल प्राण का कारण है शरीर पर्याप्ति, श्वासोच्छ्वास बल प्राण का कारण है श्वासोच्छ्वास पर्याप्ति, आयुष्य बल प्राण का कारण है आहार पर्याप्ति। आहार पर्याप्ति इसलिए कारण बताया गया है कि आहार ही वह तत्त्व है जिस पर आयुष्य प्राण टिका हुआ है। इस प्रकार इन प्राण बल के कारणों का छह पर्याप्तियों में ही समावेश हो जाता है। प्राण और पर्याप्ति के सम्बन्ध को समझ लेने के उपरान्त यह जानना भी जरूरी है कि किस जीव में कितने प्राण हो सकते हैं ? संसारी जीवों में कम से कम चार प्राणों का और अधिक से अधिक दस प्राणों का होना बताया गया
SR No.002470
Book TitleAgam Gyan Ki Adharshila Pacchis Bol
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarunmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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