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* ३८ : छठा बोल : प्राण दस
(१) श्रोत्र बल प्राण,
(२) चक्षुस् बल प्राण,
(३) घ्राण बल प्राण,
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(४) रसन बल प्राण,
(५) स्पर्शन बल प्राण |
योग की अपेक्षा से विभाजित प्राण योग प्राण हैं । यथा
(१) मन बल प्राण,
(२) वचन बल प्राण,
(३) काय बल प्राण |
श्वसन प्रक्रिया की अपेक्षा से एक प्राण है जिसे श्वासोच्छ्वास बल प्राण कहा गया है और आयु की अपेक्षा से जो एक प्राण है वह आयुष्य बल प्राण है । इस प्रकार द्रव्य प्राण के दस भेद हो जाते हैं।
इन प्राणों में प्रत्येक के साथ एक शब्द और जुड़ा हुआ है वह है बल । बल का अर्थ है शक्ति - विशेष । इस प्रकार जिस प्राण में जिस प्रकार की शक्ति-विशेष हो वह उसी शक्ति - विशेष का प्राण कहलाता है । उदाहरण के लिए, इन्द्रिय शक्ति- विशेष वाले प्राण इन्द्रिय बल प्राण कहलाते हैं। जिसमें सुनने की शक्ति - विशेष हो वह श्रोत्र बल प्राण, जिसमें देखने की शक्ति- विशेष हो वह चक्षुस् बल प्राण, जिसमें सूँघने की शक्ति - विशेष हो वह घ्राण बल प्राण, जिसमें चखने या स्वाद की शक्ति- विशेष हो वह रसन बल प्राण और जिसमें छूने या स्पर्शन की शक्ति - विशेष हो वह स्पर्शन बल प्राण है। ये सभी प्राण इन्द्रिय बल प्राण हैं । इसी प्रकार चिन्तन-मनन करने की शक्ति - विशेष जिसमें हो वह मन बल प्राण, जिसमें बोलने की शक्ति- विशेष हो वह वचन बल प्राण तथा जिसमें चलने-फिरने आदि की शारीरिक शक्ति हो वह काय बल प्राण है। ये तीनों प्राण योग रूप प्राण हैं । इसी प्रकार जिसमें श्वास और उच्छ्वास की शक्ति-विशेष हो वह श्वासोच्छ्वास बल प्राण है। इसी क्रम में अन्तिम प्राण है आयुष्य बल प्राण। अमुक भव में अमुक काल तक जीवित रहने की शक्ति-विशेष जिसमें हो वह आयुष्य बल प्राण है।
दस प्राणों में आयुष्य बल प्राण सबसे प्रमुख एवं महत्त्वपूर्ण प्राण माना गया है। बिना इस प्राण के अन्य प्राणों का कोई अस्तित्व नहीं है । जीव जब मरता