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छठा बोल : प्राण दस (दस जीवन-शक्तियाँ और उनके कार्य)
(१) श्रोत्र बल प्राण, (२) चक्षुस् बल प्राण, (३) घ्राण बल प्राण, (४) रसन बल प्राण, (५) स्पर्शन बल प्राण, (६) मन बल प्राण, (७) वचन बल प्राण, (८) काय बल प्राण (९) श्वासोच्छ्वास बल प्राण, (१०) आयुष्य बल प्राण।
जीवन धारण करने वाली शक्ति का नाम है प्राण (Life force लाइफ फोर्स)। प्राण जीव का बाह्य लक्षण है जिसके द्वारा हम पहचान सकते हैं कि अमुक जीव जीवित है या मर गया है क्योंकि कोई भी जीव बिना प्राण के जीवित नहीं रह सकता। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि जीव जिस शक्ति के संयोग से जीवित रहता है और वियोग से मर जाता है वह शक्ति प्राण कहलाती है। प्राण प्रतीक है जीवन का। जीवन की प्रतीति प्राण से ही सम्भव है।
जैनागम में प्राण के मूलतः दो भेद परिलक्षित हैं-एक द्रव्य प्राण और दूसरा भाव प्राण। जो प्राण मुक्त अवस्था में भी आत्मा के साथ हैं, वे भाव प्राण हैं। भाव प्राण आत्मा के निज स्वरूप कहे गये हैं। यथा-ज्ञान, दर्शन, चारित्र और वीर्य-ये चारों भाव प्राण हैं। दूसरे प्रकार के प्राण हैं द्रव्य प्राण। ये जीव के संसार अवस्था या बद्ध दशा में ही रहते हैं। द्रव्य प्राण के दस भेद कहे गये हैं जिनमें पाँच प्राण इन्द्रियों की अपेक्षा से, तीन प्राण योग की अपेक्षा से तथा एक-एक प्राण श्वसन और आयु की अपेक्षा से विभक्त हैं। इन्द्रियों की अपेक्षा से कहे गये प्राण इन्द्रिय बल प्राण कहलाते हैं। ये इस प्रकार हैं