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________________ पाँचवाँ बोल : पर्याप्ति छह (छह पौद्गलिक शक्तियाँ और उनके कार्य) (१) आहार पर्याप्ति, (२) शरीर पर्याप्ति, (३) इन्द्रिय पर्याप्ति, (४) श्वासोच्छ्वास पर्याप्ति, (५) भाषा पर्याप्ति, (६) मनः पर्याप्ति। ‘पर्याप्ति' जैनदर्शन का एक पारिभाषिक शब्द है। इसका अर्थ है आत्मा की विशिष्ट शक्ति की परिपूर्णता। (Certain capacity of bodily manifestation-सर्टेन केपेसिटी ऑफ बॉडिली मैनीफेस्टेशन)। इस विशिष्ट शक्ति के द्वारा जीव आहार-शरीरादि के योग्य पुद्गलों को ग्रहण करके उन्हें आहारादि के रूप में बदलता है। यह पर्याप्ति शक्ति पुद्गलों के उपचय से मिलती है। जब कोई जीव पुराना शरीर छोड़कर नया शरीर धारण करता है तो उसके जीवन यापन के लिए कुछ आवश्यक पौद्गलिक सामग्री की आवश्यकता होती है। इस पौद्गलिक सामग्री का निर्माण जीव जिस विशिष्ट शक्ति के द्वारा सम्पन्न करता है वह शक्ति विशेष पर्याप्ति कहलाती है। आत्मा की यह विशिष्ट शक्ति ‘पर्याप्ति नामकर्म' के उदय से प्रस्फुटित होती है। इसे अंग्रेजी में इस प्रकार से अभिव्यक्त कर सकते हैं-Akind of naam karma which is responsible for manifestation of certain bodily capacity. - (ए काइण्ड ऑफ नामकर्म व्हिच इज रेसपोन्सिबल फॉर मैनीफेस्टेशन ऑफ सर्टेन बॉडिली केपेसिटी।) जैनागम में पर्याप्ति के छह भेद निरूपित हैं। यथा(१) आहार पर्याप्ति, (२) शरीर पर्याप्ति, (३) इन्द्रिय पर्याप्ति, (४) श्वासोच्छ्वास पर्याप्ति,
SR No.002470
Book TitleAgam Gyan Ki Adharshila Pacchis Bol
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarunmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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