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________________ * ३० : चौथा बोल : इन्द्रिय पाँच और उपकरण इन्द्रिय तो ज्ञान के साधन हैं और लब्धि ज्ञान की शक्ति है और इस शक्ति का कार्यरूप में परिणमन उपयोग है । अतः ये चारों मिलकर ही अपने-अपने विषय का ज्ञान कर सकती हैं, एक, दो या तीन नहीं । सार रूप में यह कहा जा सकता है कि पूर्व इन्द्रिय की प्राप्ति पर ही उत्तर इन्द्रिय प्राप्त हो सकती है। ऐसा नियम नहीं है कि उत्तर इन्द्रिय की प्राप्ति पहले हो जाये उसके उपरान्त पूर्व इन्द्रिय की प्राप्ति हो । मनः नोइन्द्रिय स्पर्शन आदि पाँचों इन्द्रियों के अतिरिक्त एक और इन्द्रिय का भी उल्लेख जैनागम में मिलता है वह है मन । स्पर्शन आदि इन्द्रियों की भाँति मन भी ज्ञान का साधन है और यह साधन स्पर्शनादि इन्द्रियों की तरह बाह्य न होकर आन्तरिक है । इसी कारण मन को अन्तःकरण भी कहते हैं । मन का विषय बाह्य इन्द्रियों की तरह सीमित नहीं है । बाह्य इन्द्रियाँ केवल मूर्त्त पदार्थों को अंश रूप ग्रहण करती हैं जबकि मन मूर्त्त-अमूर्त सभी पदार्थों को अनेक रूपों में ग्रहण करता है, जैसे-चक्षुरिन्द्रिय। उसका विषय देखना है तो वह केवल देखेगी, अन्य कार्य नहीं करेगी और उसमें भी अवरोध आ सकता है । इसी तरह अन्य इन्द्रियों के अपने-अपने विषय हैं किन्तु मन के लिए ऐसी कोई सीमा - मर्यादा नहीं है, न कोई अवरोध है । अतः मन सर्वार्थग्राही है । वह रूप, रस, गन्ध, स्पर्श आदि सभी विषयों के साथ-साथ अमूर्त पदार्थों में भी प्रवृत्ति रखता है । मन के लिए क्षेत्र का भी कोई बन्धन नहीं है। वह क्षणभर में समग्र लोक का परिभ्रमण कर लेता है। मन की गति निर्बाध है, असीमित है, अपरिमित है। मन का काम है विचार करना, चिन्तन करना । मन उन विषयों का भी चिन्तन करता है जो इन्द्रियों द्वारा ग्रहण नहीं किये गये हैं। यानी मन समस्त विषयों में विकास-योग्यता के अनुसार विचार कर सकता है। वह विचार करने में स्वतन्त्र है। मन का विषय है श्रुत अर्थात् श्रुत ज्ञान । उदाहरण के लिए, 'धर्म' शब्द श्रोत्रेन्द्रिय के द्वारा सुनाई पड़ा। अब धर्म के जितने भी अर्थ - रूप हैं उन सबका चिन्तन-मनन मन के द्वारा होता है । अतः इस अपेक्षा से श्रुत को मन का विषय माना जा सकता है। मन की यह विशेषता है कि पाँचों इन्द्रियों से तो केवल मति ज्ञान हो सकता है लेकिन मन से मति और श्रुत दोनों हो सकते हैं। इनमें भी मति की अपेक्षा श्रुत ही प्रधान है।
SR No.002470
Book TitleAgam Gyan Ki Adharshila Pacchis Bol
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarunmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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