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________________ आगमज्ञान की आधारशिला : पच्चीस बोल * २९ * परिचायक ही नहीं हैं अपितु संसारी जीवों के संवेदनों का साधन भी हैं। इसी आधार पर इन्द्रियों के दो भेद हैं-(१) द्रव्येन्द्रिय, (२) भावेन्द्रिय। स्पर्शनादि इन्द्रियों की बाहरी और आन्तरिक पौद्गलिक रचना द्रव्येन्द्रिय तथा आत्मा की जानने की योग्यता और प्रवृत्ति भावेन्द्रिय कहलाती है। वास्तव में पुद्गलमय जड़ इन्द्रिय द्रव्येन्द्रिय है और आत्मिक परिणाम रूप भावेन्द्रिय है। इनके भी दो प्रभेद हैं। द्रव्येन्द्रिय के ये प्रभेद हैं (१) निवृत्ति द्रव्येन्द्रिय-इन्द्रियों की आकार रचना, (२) उपकरण द्रव्येन्द्रिय-विषय ग्रहण की पौद्गलिक शक्ति। निर्वृत्ति द्रव्येन्द्रिय के माध्यम से जीव बाह्य जगत् का ज्ञान करता है जबकि उपकरण इस बाह्य ज्ञान में सहायक होता है तथा निर्वृत्ति रूप रचना को नुकसान नहीं पहुँचाने देता। निर्वृत्ति और उपकरण बाह्य और आन्तरिक इन दो भेदों में निरूपित हैं। भावेन्द्रिय भी दो प्रकार की कही गई हैं-एक लब्धि भावेन्द्रिय और दूसरी उपयोग भावेन्द्रिय। - लब्धि का अर्थ है क्षमता, शक्ति की प्राप्ति। ज्ञानावरण आदि कर्म के क्षयोपशम से जीव की जो शक्ति जाग्रत या अनावृत्त होती है वह लब्धि है और इस लब्धि, यानी प्राप्त शक्ति क्षमता द्वारा जानने की जो क्रिया होती है, वह उपयोग है। इस प्रकार आत्मिक परिणाम लब्धि है और लब्धि, निर्वृत्ति और उपकरण इन तीनों के संयोगिक माध्यम से स्पर्शनादि विषयों का सामान्य और विशेष ज्ञान का होना उपयोग है। यानी चेतना की योग्यता लब्धि और चेतना . का व्यापार उपयोग है। जैसे कोई दूरदर्शन खरीदे यह तो उसकी प्राप्ति हुई और इसके द्वारा विभिन्न दर्शित चित्रों का अवलोकन करना उसका उपयोग है। उपयोग भावेन्द्रिय केवल स्पर्शनादि पर्यायों को ही जान सकती है। इनके भी बाह्य और आन्तरिक की अपेक्षा से दो-दो भेद हैं। उपयोग तो ज्ञान-विशेष है जो इन्द्रिय का फल है, उसको इन्द्रिय कैसे कहा जा सकता है ? इसका समाधान यह है कि यह बात सत्य है कि लब्धि, निर्वत्ति और उपकरण इन तीनों का समवाय रूप जो कार्य है, वह उपयोग है किन्तु उपचार से अर्थात् कार्य में कारण का आरोप करके उपयोग को भी इन्द्रिय कहा जा सकता है। इस प्रकार स्पर्शनादि प्रत्येक इन्द्रिय के ये जो चार भेद-लब्धि, निर्वृत्ति, उपकरण और उपयोग बताए गये हैं उनका एक आधार है वह यह कि निर्वृत्ति
SR No.002470
Book TitleAgam Gyan Ki Adharshila Pacchis Bol
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarunmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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