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* २८ * चौथा बोल : इन्द्रिय पाँच
पाँचों कर्मेन्द्रियाँ स्पर्शनेन्द्रिय के अन्तर्गत हैं। इस प्रकार संसारी जीवों में पाँच इन्द्रियाँ ही प्रमुख हैं। यथा(१) श्रोत्रेन्द्रिय [Sense of hearing (Ears) सेन्स ऑफ हीयरिंग
(ईअर्स)], (२) चक्षुरिन्द्रिय [Sense of sight (Eyes)-सेन्स ऑफ साइट
(आईज)], (३) घ्राणेन्द्रिय [Sense of smell (Nose) सेन्स ऑफ स्मैल
(नोज)], (४) रसनेन्द्रिय [Sense of test (Tongue) सेन्स ऑफ टेस्ट
__(टंग)], (५) स्पर्शनेन्द्रिय (Sense of touch-सेन्स ऑफ टच)। .
पाँचों इन्द्रियाँ अपने-अपने विषयों को ही ग्रहण करती हैं। कोई भी इन्द्रिय दूसरी इन्द्रिय के विषय को ग्रहण नहीं करती। जैसे-आँख सुन नहीं सकती, कान देख नहीं सकता आदि-आदि। जैनागम में इन पाँचों इन्द्रियों के पाँच विषय बताए गये हैं। जैसे स्पर्शनेन्द्रिय का विषय है स्पर्श, उसी प्रकार रसनेन्द्रिय का स्वाद, घ्राणेन्द्रिय का गन्ध, चक्षुरिन्द्रिय का रूप तथा श्रोत्रेन्द्रिय का शब्द होता है। इन पाँचों विषयों के भी तेईस प्रभेद निरूपित हैं। ये भेद इस प्रकार हैं
१. शब्द के तीन भेद- (१) जीव, (२) अजीव, (३) मिश्र। २. रूप के पाँच भेद- (१) श्वेत, (२) पीत, (३) नीला, (४) लाल,
(५) काला। ३. गन्ध के दो भेद- (१) सुगन्ध, (२) दुर्गन्ध। ४. स्वाद के पाँच भेद- (१) तीखा, (२) कड़वा, (३) कषैला, (४) खट्टा,
(५) मीठा। ५. स्पर्श के आठ भेद-(१) शीत, (२) उष्ण, (३) रूक्ष, (४) चिकना,
. (५) कठोर, (६) कोमल, (७) हल्का, (८) भारी। ये पाँचों इन्द्रियाँ स्वयं कुछ नहीं करती हैं अपितु ये आत्म-प्रदेशों की सहायता से अलग-अलग कार्य सम्पन्न करती हैं। इन्द्रियाँ संसारी जीवों की