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आगमज्ञान की आधारशिला : पचीस बोल + २५ *
(५) बीज रूह, (६) सम्मूर्छिम, (७) तृण, (८) लता।
पहले प्रकार की वनस्पति जिसका सिरा ही बीज हो, जैसे-कौरंट का पौधा आदि। दूसरे में मूल ही बीज हो, जैसे-कंद आदि। तीसरे में गाँठे ही बीज हों, जैसे-ईख आदि। चौथे के स्कन्ध ही बीज हों, जैसे-थूहर आदि। पाँचवें में जो बीज से ही उत्पन्न हों, जैसे-गेहूँ, जौ आदि। छठा जो स्वयमेव पैदा हो, जैसेअंकुर आदि। साँतवें तृणादि घास। आठवाँ चम्पा, चमेली, ककड़ी, खरबूज, तरबूज आदि की बेलें। (६) त्रसकाय .द्वीन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक के समस्त जीव त्रसकाय जीव कहलाते हैं। इनमें क्रोध, मान, माया, लोभ, हास्य, भय, रति-अरति, शोक, जुगुप्सा, सुरक्षा आदि प्रवृत्तियाँ मिलती हैं। इन जीवों की उत्पत्ति के आठ प्रकार हैं
(१) अण्डज-अण्डों से पैदा होने वाले; जैसे-मुर्गा, कबूतर, मोर आदि। (२) पोतज-पोत अर्थात् शिशु के रूप में उत्पन्न होने वाले; जैसे-हाथी,
मानव शिशु आदि। (३) जरायुज-जन्म के समय जिन पर झिल्ली लिपटी रहती है; जैसे-गाय
आदि (ये तीनों गर्भज होते हैं)। (४) रसज-छाछ, दही आदि में उत्पन्न होने वाले सूक्ष्म जीव। (५) स्वेदन। (६) सम्मूर्छिम। (७) उद्भिज-पसीने से उत्पन्न होने वाले खटमल, नँ, टिड्डी, पतंगे,
मधुमक्खी आदि। ये सभी सम्मूर्छिम और उद्भिज कहलाते हैं। (८) औपपातिक-अचानक उत्पन्न होने वाले; जैसे-कुंभी में उत्पन्न होने
वाले नारक तथा पुष्प शय्या में उत्पन्न होने वाले देव। पहले में जीवों की अण्डों से उत्पत्ति होती है, जैसे-पक्षी, सर्प आदि। दूसरे, पोतज अपने जन्म के समय खुले अंगों सहित होते हैं, जैसे-हाथी। तीसरे,