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आगमज्ञान की आधारशिला : पच्चीस बोल * १३ *
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हैं-एक स्पर्शनेन्द्रिय, दूसरी रसनेन्द्रिय और तीसरी घ्राणेन्द्रिय। त्रीन्द्रिय जाति के जीव हैं-चींटी, मकोड़ा, नँ, लीख, चीचड़ आदि।
चतुरिन्द्रिय जाति के जीवों में पिछली तीन जातियों के जीवों की अपेक्षा एक और इन्द्रिय अधिक विकसित हो जाती है। इस जाति के जीवों में चार इन्द्रियाँ होती हैं इसलिए ये चतुरिन्द्रिय जाति के जीव कहलाते हैं। ये चार इन्द्रियाँ इस प्रकार हैं-स्पर्शनेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय व चक्षुरिन्द्रिय। ये चतुरिन्द्रिय जीव हैं-मक्खी, मच्छर, टिड्डी, कसारी, बिच्छू आदि।
जिन जीवों में पाँच इन्द्रियाँ होती हैं, उन जीवों की जाति है पंचेन्द्रिय। पंचेन्द्रिय जाति के जीवों में श्रोत्र (कर्ण) इन्द्रिय विकसित हो जाती है। इस जाति के जीवों में पाँच इन्द्रियाँ इस प्रकार हैं-स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और श्रोत्र (कर्ण) इन्द्रिय। पंचेन्द्रिय जाति के जीव हैं-मच्छ, मगर, गाय, सर्प, पक्षी आदि मनुष्य, नारक व देव। पंचेन्द्रिय जाति के जीवों को चार भागों में विभक्त किया जा सकता है
(१) तिर्यंच पंचेन्द्रिय जाति के जीव, (२) मनुष्य पंचेन्द्रिय जाति के जीव, (३) देव पंचेन्द्रिय जाति के जीव, (४) नारक पंचेन्द्रिय जाति के जीव।
इन चारों में देव, नारक, गर्भज मनुष्य और गर्भज तिर्यंच में तो मन होता - है किन्तु सम्मूर्छिम मनुष्य और तिर्यंच में मन का सर्वथा अभाव होता है।
संसार के समस्त पशु-पक्षी तिर्यंच जाति के जीवों में समाहित हैं। ये तीन प्रकार के हैं। यथा
(१) जल में रहने वाले जीव-जलचर, (२) थल में रहने वाले जीव-थलचर, (३) आकाश में उड़ने वाले जीव-खेचर-नभचर।।
मछली, कछुआ, मगर आदि जलचर जीव हैं। चार पैर वाले और रेंगकर चलने वाले पशु स्थलचर जीव होते हैं। स्थलचर जीवों को दो भागों में बाँटा जा सकता है-एक चतुष्पाद, यानी चार पैर वाले पशु और दूसरे परिसर्प, यानी रेंगकर चलने वाले पशु। चतुष्पाद जीव मुख्यतः चार प्रकार के होते हैं