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* १४ + दूसरा बोल : जाति पाँच
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(१) एक खुर वाले, (२) द्विखुर वाले, (३) गंडीपद (गोल पैर वाले), (४) सनखपद (नख सहित पैर वाले) या श्वान पद या पंजे वाले पद।
पहले प्रकार के पशु हैं-घोड़ा, गधा, खच्चर आदि। दूसरे प्रकार के पशु हैंहिरन, रीछ, बैल, बकरी, गाय, भैंस आदि। तीसरे प्रकार के पशु हैं-हाथी, ऊँट, गैंडा आदि। चौथे प्रकार के पशु हैं-सिंह, बाघ, चीता, कुत्ता, बिल्ली आदि। परिसर्प या रेंगकर चलने वाले पशओं को भी दो भागों में बाँटा जा सकता है-एक भुजपरिसर्प और दूसरे उरपरिसर्प। भुजाओं की सहायता से रेंगने वाले पशु भुजपरिसर्प कहलाते हैं, जैसे-नेवला, चूहा, छिपकली, गिलहरी
आदि। जो पशु (कीट) छाती या हृदय (उर) की मदद से जमीन पर रेंगते हैं वे उरपरिसर्प पशु या कीट कहलाते हैं, जैसे-सर्प आदि। इनके भी चार भेद हैं
(१) अहि, (२) अजगर, (३) असालिया, (४) महुरग।
आकाश में उड़ने वाले जीव खेचर या खग या पक्षी कहलाते हैं। ये चार प्रकार के होते हैं
(१) चर्म पक्षी, (२) रोम पक्षी, . (३) समुद्र पक्षी, (४) वितत पक्षी।
पहले प्रकार के पक्षियों के पर चमड़े के होते हैं, जैसे-चील, चमगादड़, बगुला आदि। दूसरे प्रकार के पक्षी रोम (बाल) के पंखों वाले होते हैं, जैसेमोर, कौआ, मैना, कोयल, तोता, बाज, हंस, चकवा आदि। तीसरे प्रकार के पक्षियों के पंख अविकसित रहते हैं अर्थात् डिब्बेनुमा इनके पंख सदा ढके रहते हैं। चौथे प्रकार के पक्षियों के पंख सदा खुले और फैले हुए होते हैं। पहले-दूसरे प्रकार के पक्षी मनुष्य क्षेत्र की सीमा के अन्दर रहते हैं जबकि तीसरे और चौथे प्रकार के पक्षी मनुष्य क्षेत्र-सीमा से बाहर ही रहते हैं अर्थात् ये पक्षी अढाई द्वीप के बाहर ही मिलते हैं।