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________________ * १७४ * पचीसवाँ बोल : चारित्र पाँच कहलाता है। चूँकि यह चारित्र पूर्व चारित्र का छेदन करके आता है, इसलिए इसे छेदोपस्थापन चारित्र कहते हैं। सामायिक चारित्र और इस चारित्र में जो मूल भेद है वह यह है कि सामायिक चारित्र में सावध योग का त्याग सामान्य रूप से होता है और इसमें सावध योग का त्याग छेद अर्थात् विभाग या भेदपूर्वक होता है। सामान्यतः छेदोपस्थापन चारित्र को बड़ी दीक्षा भी कहते हैं। दीक्षा लेते समय सामायिक चारित्र को अंगीकार किया जाता है अर्थात् सर्व सावध योग का त्याग किया जाता है। दीक्षा उपरान्त सात दिन या छह माह बाद साधक में पाँच महाव्रतों की विभागशः आरोपणा की जाती है। यह भी छेदोपस्थापन चारित्र है। प्रथम ली हुई दीक्षा में किसी दोष सेवन के कारण महाव्रत दूषित हो जाएँ तब उसका छेदन कर नए सिरे से जो व्रत ग्रहण कराए जाते हैं अथवा नई दीक्षा भी दी जाती है, वह भी छेदोपस्थापन चारित्र है। इस दशा में पूर्व दीक्षा-पर्याय के वर्षों की गणना नहीं की जाती है और ज्येष्ठ साधु भी नवदीक्षित बम सकता है। छेदोपस्थापन चारित्र के दो भेद हैं-एक निरतिचार छेदोपस्थापन चारित्र और दूसरा सातिचार छेदोपस्थापन चारित्र। दोषरहित स्थिति में छेदोपस्थापन चारित्र का ग्रहण निरतिचार छेदोपस्थापन चारित्र है। यह चारित्र एक प्रकार से संघ में सम्मिलित करने की एक प्रक्रिया है। दोष विशेष के कारण पूर्व दीक्षा-पर्याय का छेदन कर प्रायश्चित्त रूप में आत्म-विशुद्धि के लिए पुनः महाव्रतों को ग्रहण करना, यानी पुनः दीक्षा लेना सातिचार छेदोपस्थापन चारित्र है। पहले दो चारित्र-सामायिक और छेदोपस्थापन चारित्र-छठे से नवें गुणस्थानों तक होते हैं। (३) परिहार विशुद्धि चारित्र परिहार विशुद्धि का अर्थ है संघ से पृथक् होकर विशिष्ट तपःसाधना से आत्मा को परिशुद्ध करना। यह विशिष्ट प्रकार का तप-प्रधान आचार है। इसमें परिहार नामक विशेष तप किया जाता है जिससे आत्मा की विशेष शुद्धि हो सके। जैनागम में परिहार नामक तप की विधि का सविस्तार वर्णन हुआ है। संक्षेप में इसकी विधि इस प्रकार है-नौ साधु मिलकर परिहार तप प्रारम्भ करते हैं। इनमें से चार साधु अठारह महीने तक कठोर तपःसाधना करते हैं और चार उनकी वैयावृत्य, यानी सेवा करते हैं तथा एक उनके गुरु या आचार्य
SR No.002470
Book TitleAgam Gyan Ki Adharshila Pacchis Bol
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarunmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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