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आगमज्ञान की आधारशिला : पच्चीस बोल * १७३ *
जैनागम में आत्म-परिणामों की विशुद्धि के तरतम भाव की अपेक्षा चारित्र के पाँच भेद निरूपित हैं। यथा(१) सामायिक चारित्र (Equanimous conduct-एक्वानिमस
कण्डक्ट), (२) छेदोपस्थापन चारित्र (New ascetic life न्यू एसेटिक लाईफ), (३) परिहार विशुद्धि चारित्र (A special kind of conduct-ए
स्पेशल काइण्ड ऑफ कण्डक्ट), (४) सूक्ष्म संपराय चारित्र (Subtle passions—सटल पेशन्स), (५) यथाख्यात चारित्र (Conduct devoid of passion कण्डक्ट
डिवौइड ऑफ पेशन)। (१) सामायिक चारित्र .. इसमें दो शब्द हैं-एक सामायिक और दूसरा चारित्र। जो चारित्र सामायिक से परिपूर्ण हो, वह सामायिक चारित्र है। सामायिक का अर्थ है समभाव में स्थित होना। समभाव में स्थिर रहने के लिए समस्त अशुद्ध प्रवृत्तियों अर्थात् सावधयोग अर्थात् पाप-क्रियाओं अथवा राग-द्वेष मूलक एवं विषय-कषाय बढ़ाने वाली क्रियाओं का त्याग किया जाता है। अतः समभाव की साधना सामायिक चारित्र कहलाती है।
सामायिक चारित्र का पालन तीन करण (कृत, कारित व अनुमोदन) व तीन योगों (मन, वचन व काय) से होता है जिससे पापासव का सम्पूर्ण रूप से निरोध हो सके। शेष चार चारित्र सामायिक चारित्र के ही विशिष्ट रूप हैं किन्तु इन चारित्रों में आचार और गुण सम्बन्धी कुछ विशेषताएँ होने से इन चारों को भिन्न श्रेणी में रखा गया है। (२) छेदोपस्थापन चारित्र
यह चारित्र का दूसरा भेद है। इसमें दो शब्द हैं-एक छेदोपस्थापन और दूसरा चारित्र। छेदोपस्थापन एक युग्म शब्द है। इसमें दो शब्द जुड़े हैं-एक छेद
और दूसरा उपस्थापन। छेद का यहाँ अर्थ है पूर्व गृहीत चारित्र-पर्याय का छेदन। उपस्थापन से अभिप्राय विभागपूर्वक महाव्रतों की उपस्थापना या आरोपण करना। इस प्रकार जिस चारित्र में पूर्व गृहीत चारित्र-पर्याय का छेदन तथा महाव्रतों में उपस्थापन या आरोपण होता है, वह छेदोपस्थान चारित्र