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* ४* पहला बोल: गतियाँ चार
आधार जीव का उत्पत्ति क्षेत्र है । जब उत्पत्ति क्षेत्र और मृत्यु क्षेत्र सम हों, सीधी दिशा में हों, तब जीव एक ही समय में ऋजु गति से उत्पत्ति क्षेत्र में पहुँच जाता है। यदि उत्पत्ति क्षेत्र विषम हो तो वहाँ पहुँचने में जीव को एक, दो या तीन घुमाव लेने पड़ते हैं। चौथे समय तो वह जीव अवश्य ही नया जन्म ग्रहण कर ता है। इस स्थिति में जीव की गति वक्र होती है।
अन्तराल गति का कालमान जघन्य एक समय का और उत्कृष्ट चार समय का होता है। जब गति ऋजु होती है अर्थात् जिसमें एक भी घुमाव नहीं होता तब एक समय लगता है और जब गति वक्र होती है तब दो, तीन या चार समय लगते हैं। वक्र गति में जब एक घुमाव हो तो दो समय, जब दो घुमाव हों तो तीन समय और जब तीन घुमाव हों तो चार समय लगते हैं ।
इसी प्रकार आहारक - अनाहारक के विषय में कहा गया है कि अन्तराल गति वाला संसारी जीव एक या दो समय तक अनाहारक ( आहार बिना लिए) रह सकता है। एक घुमाव लेने पर पहला समय अनाहारक, दो घुमाव लेने पर पहला- दूसरा समय तथा तीन घुमाव वाली गति में पहला, दूसरा, तीसरा समय अनाहारक होता है। चौथे समय तो जन्म लेते ही वह जीव अवश्य ही आहार ग्रहण कर लेता है । अन्तराल गति वाले संसारी जीवों को सूक्ष्म शरीर सहित होने के कारण आहार लेना पड़ता है । ऋजु गति वाले जीव बिना घुमाव के एक ही समय में दूसरा जन्म लेते हैं तो वे आहारक होते हैं । इसी प्रकार वक्र गति करने वाले जीवों की दो समय की एक घुमाव वाली, तीन समय की दो घुमाव वाली, चार समय की तीन घुमाव वाली स्थितियाँ अनाहारक होती हैं। जिसमें पहली का पहला, दूसरी का पहला व दूसरा, तीसरी का पहला, दूसरा और तीसरा समय अनाहारक होता है जबकि पहली का दूसरा समय, दूसरी का तीसरा समय तथा तीसरी का चौथा समय आहारक होता है ।
(१) नरक गति
जैनदर्शन के अनुसार सम्पूर्ण लोक तीन भागों में विभक्त है - एक ऊर्ध्व लोक, दूसरा मध्य लोक ( तिर्यक् लोक) और तीसरा अधो लोक । संसार के समस्त जीव इन तीन लोकों में समाविष्ट हैं। अधो लोक में सात भूमियाँ हैं जिनमें नरक (नारक) हैं। ये भूमियाँ घनाम्बु घन वात और घन आकाश पर स्थित हैं । ये क्रमशः एक-दूसरे के नीचे हैं और नीचे की ओर अधिक विस्तीर्ण हैं। ये सातों भूमियाँ नारकों के निवास स्थान की भूमियाँ हैं, इसलिए नरक भूमि