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________________ आगमज्ञान की आधारशिला : पच्चीस बोल : १५९ सामर्थ्य तथा परिस्थिति के अनुसार एक घड़ी से लेकर एक दिन तक या इससे भी अधिक समय के लिए कर सकता है। देशावकाशिक व्रत श्रावक को भोग्य पदार्थों की असारता पर प्रकाश डालते हुए उसे आत्म-संयम की ओर प्रवृत्त करता है । यदि श्रावक भोग्य पदार्थों का एक साथ इतनी लम्बी अवधि के लिए त्याग नहीं कर सकता है तो अल्प समय के लिए धीरे-धीरे इन पदार्थों से विरक्त रहने का अभ्यास करे। यह व्रत श्रावक में आत्म-कल्याण के साथ-साथ आत्म- बल व मनोबल भी बढ़ाता है तथा स्वास्थ्य की रक्षा भी करता है । (३) पौधष व्रत यह व्रत धर्म - साधना को पुष्ट करने वाला व्रत है। इसमें आहार, शरीर, शृंगार, व्यापार आदि सभी कार्यों से विमुख होकर एक दिन-रात, यानी अष्ट प्रहर तक उपाश्रय आदि शान्त स्थान में रहकर धर्मध्यान, आत्म- गुणों का चिंतवन तथा पंच परमेष्ठी का गुण - स्मरण आदि किया जाता है। पौषध उपवास में आहार, शरीर, अब्रह्मचर्य तथा सावद्य क्रियाओं का त्याग किया जाता है इस व्रत के चार रूप हैं। यथा 1 (१) आहार पौषध, (२) शरीर पौषध, (३) ब्रह्मचर्य पौषध, (४) अव्यापार पौषध । इस व्रत को श्रावक वर्ष में कम से कम एक बार तो अवश्य करता है जिससे उसको आत्मिक आनन्द मिलता है, स्वास्थ्य भी ठीक रहता है। (४) अतिथि संविभाग व्रत घर-द्वार पर आए हुए अतिथि को अपने न्यायोपार्जित धन में से विधिपूर्वक आहार आदि देना अतिथि संविभाग व्रत है। अतिथि का यहाँ अभिप्राय सम्यक्त्वी साधु से है । प्रत्येक श्रावक-श्राविका का यह कर्त्तव्य है कि वह साधु को शुद्ध व निर्दोष दान की भावना रखे । श्रावक इस व्रत के माध्यम से अपने घर पर बनी हुई वस्तुओं को अंशदान में देता है। यह दान सुपात्रदान है। ऐसे दान से श्रावक में आत्म-संयम की प्रवृत्ति बढ़ती है।
SR No.002470
Book TitleAgam Gyan Ki Adharshila Pacchis Bol
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarunmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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