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________________ * १५८* बाईसवाँ बोल : श्रावक के बारह व्रत - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - चार शिक्षाव्रत ___ इसमें श्रावक धर्माराधना करता है। वह धर्म के साथ अपनी जीवनचर्या को स्थिर रखता है। श्रावक बार-बार व्रतों का अभ्यास करता रहता है जिससे उसकी समस्त प्रवृत्तियाँ निवृत्तिपरक हो जाएँ और श्रावक जीवन योग्य साधना की ओर धीरे-धीरे अग्रसर हो सके। अणुव्रत और गुणव्रत जीवन में एक ही बार ग्रहण किए जाते हैं किन्तु शिक्षाव्रत बार-बार ग्रहण किए जाते हैं क्योंकि ये व्रत समयबद्ध होते हैं अर्थात् कुछ समय के लिए ही होते हैं। शिक्षाव्रत चार प्रकार के कहे गए हैं। यथा- . (१) सामायिक व्रत, (२) देशावकाशिक व्रत, (३) पौषध व्रत, (४) अतिथि संविभाग व्रत। (१) सामायिक व्रत सामायिक शिक्षाव्रत को पालने वाला श्रावक नियमित दो समय की सामायिक करता है। सामायिक में वह कम से कम एक मुहूर्त अर्थात् अड़तालीस मिनट का धर्मध्यान करता है जिससे सांसारिक कार्यों या सावध कर्मों से उसे मुक्ति मिल सके। सामायिक से श्रावक अपने भीतर समभाव जगाता है जिससे श्रावक अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थितियों में शांत रह सके। श्रावक की सामायिक दो करण और तीन योग से अल्पकाल के लिए की जाती है। साधक को सामायिक से आत्म-शान्ति मिलती है। (२) देशावकाशिक व्रत दिशा परिमाण व्रत में ग्रहण की हुई दिशाओं का परिमाण तथा अन्य व्रतों में ली हुई मर्यादाओं को और भी कम कर साथ ही आंशिक रूप से पौषध करना, दया पालना, संवर करना तथा चौदह प्रकार के नियमों, जैसे-सचित्त, द्रव्य, विगय, जूते-चप्पल आदि पान-सुपारी, फल-फूल, माला आदि पहनने-ओढ़ने के वस्त्र, रिक्शा आदि वाहन का प्रयोग शयन, विलेपन, स्नान, दिशा, ब्रह्मचर्य तथा भत्त आदि की मर्यादा को कम करना देशावकाशिक शिक्षाव्रत है। यह शिक्षाव्रत का दूसरा व्रत है। यह व्रत श्रावक अपनी शक्ति व
SR No.002470
Book TitleAgam Gyan Ki Adharshila Pacchis Bol
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarunmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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