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आगमज्ञान की आधारशिला : पच्चीस बोल : १५७
वाली वसनादि वस्तुएँ, जैसे- वस्त्र, मकान, शय्या आदि। इन वस्तुओं का परिमाण या मर्यादा रखना भोगोपभोग परिमाण व्रत कहलाता है। इसमें श्रावक व्यर्थ की वस्तुओं का संचय नहीं करता है। ऐसा करने में उसे कोई कष्ट या अभाव का अनुभव नहीं होता है। श्रावक कर्मादान का भी त्याग करता है । कर्मादान उन व्यवसायों को कहा जाता है जिनमें अत्यधिक आरम्भ और हिंसा होती है। आत्म-परिणामों में क्रूरता भी अधिक रहती है । कर्मादान की संख्या पन्द्रह बतायी गई है। यथा - ( 9 ) अंगार कर्म, (२) वन कर्म, (३) शकट कर्म, (४) भाट कर्म, (५) स्फोट कर्म, (६) दन्त वाणिज्य, (७) लाक्षा वाणिज्य, (८) रस वाणिज्य, (९) केश वाणिज्य, (१०) विष वाणिज्य, (११) यन्त्र पीलन कार्य, (१२) दावाग्नि दायन कर्म, (१३) सरोहृद तड़ाग शोषणता कर्म, (१४) निर्लांच्छन कर्म, (१५) असतीजन पोषणता कर्म । इनके अतिरिक्त मत्स्यपालन, मुर्गीपालन आदि भी कर्मादान में समाविष्ट हैं। भोगोपभोग की छब्बीस प्रकार के पदार्थों की सूची उवासगदशासूत्र, अध्ययन १ में दी गई है। इनके अतिरिक्त स्कूटर, कार, टी. वी., टेप, ट्रांजिस्टर आदि वस्तुएँ भी इसमें समाविष्ट हैं। इस व्रत के माध्यम से जहाँ भोगोपभोग की वस्तुओं का परिमाण निर्धारित किया गया है वहाँ हिंसाजन्य अहितकर व्यवसायों के भी त्याग की बात कही गई है, ताकि श्रावक अहिंसक ढंग से अपनी आजीविका का उपार्जन कर सके। यह व्रत श्रावक के आत्म-कल्याण में तो सहायक है ही साथ ही देश की उन्नति और आत्म-निर्भरता में भी बड़ा उपयोगी है।
(३) अनर्थदण्ड विरमण व्रत
तीसरे प्रकार का गुणव्रत है अनर्थदण्ड विरमण व्रत । बिना प्रयोजन के हिंसा आदि पापों का त्याग अनर्थदण्ड विरमण गुणव्रत है। श्रावक प्रयोजनवश हिंसादि करता है, जैसे- अग्निकाय, जलकाय आदि स्थावर जीवों की हिंसा, भोजन आदि बनाने में हिंसा, बगीचे में भ्रमण करते समय फूल-पत्ते को तोड़ लेना, हरी घास को तोड़ लेना आदि किन्तु इस गुणव्रत के द्वारा वह बिना प्रयोजन के हिंसादि पापों से अपने को दूर रख सकता है। वह न तो किसी के प्रति अपने मन में अशुभ विचार लाता है और न ही हिंसक उपकरणादि, जैसेचाकू, छुरी आदि किसी को देता है । वह हिंसात्मक कार्यों को करने के लिए उपाय भी नहीं बताता है। वह अपनी सारी प्रवृत्ति सावधानीपूर्वक करता है जिससे अधिक से अधिक पापों से बचा जा सके। यह गुणव्रत आत्म-कल्याण के साथ-साथ नागरिक दृष्टि से भी उपयोगी और उपादेयी है।