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________________ आगमज्ञान की आधारशिला : पच्चीस बोल : १३७ on another or converted into another. — दी एलीमेण्ट्स आर ऑल सेपरेट इन अवर माइण्ड । वी केन नॉट इमेजिन दैट वन ऑफ देम कुड डिपेण्ड ऑन एनदर और कनवर्टिड इनटू एनदर ।" जैनदर्शन में द्रव्यों के इन लक्षणों के आधार पर 'परिणामी नित्यत्ववाद' की भी कल्पना की गई है। इसकी तुलना रासायनिक विज्ञान के द्रव्याक्षरत्ववाद से की जा सकती है। प्रसिद्ध वैज्ञानिक लेवोसियर ने इसकी स्थापना करते हुए कहा कि "इस अनन्त विश्व में द्रव्य का परिणाम सदा समान रहता है । उसमें किसी भी प्रकार की कमी या बढ़ोतरी नहीं होती है, न किसी वर्तमान द्रव्य का पूर्ण नाश होता है और न किसी नए द्रव्य की पूर्ण उत्पत्ति होती है। यह नाश और उत्पत्ति तो द्रव्य का रूपान्तर है । जैसे कोयला जलकर राख बन जाता है, पर वह नष्ट नहीं होता। वायुमण्डल में ऑक्सीजन अंश के साथ मिलकर कार्बोनिक एसिड गैस के रूप में बदल जाती है, वैसे ही शक्कर या नमक आदि पानी में घुलकर नष्ट नहीं होते अपितु ठोस रूप से बदलकर द्रव्य रूप में परिवर्तित हो जाते हैं। प्रकाश, तापमान, चुम्बकीय आकर्षण आदि का ह्रास नहीं होता अपितु वे एक-दूसरे में परिवर्तित हो जाते हैं आदि-आदि। इस प्रकार द्रव्यों का त्रिविध लक्षण इनमें प्रतिक्षण घटित होता रहता है, यानी किसी भी द्रव्य का नाश या उत्पाद होना जिसे समझा जाता है वह उसका रूपान्तर में परिणमन मात्र है।" गुण की अपेक्षा से द्रव्य नित्य है, ध्रौव्य है और पर्याय की अपेक्षा से परिणमनशील है, अनित्य है, जिसका उत्पाद और व्यय दोनों हैं। इस प्रकार द्रव्य अपने मूल स्वभाव या स्वरूप को कभी नहीं त्यागता है । यद्यपि इसकी अवस्थाएँ बदलती रहती हैं फिर भी इसका स्वरूप वही रहता है। लोक में अनन्त द्रव्य हैं। इन्हें छह भागों में विभक्त किये जाने से ये 'षड्द्रव्य' कहलाते हैं। यथा (१) धर्म द्रव्य, (२) अधर्म द्रव्य, (३) आकाश द्रव्य, (४) काल द्रव्य, (५) जीव द्रव्य, (६) पुद्गल द्रव्य ।
SR No.002470
Book TitleAgam Gyan Ki Adharshila Pacchis Bol
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarunmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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