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* १३६ * बीसवाँ बोल ः षड्द्रव्य और उनके भेद
कहलाती हैं, यानी एक पर्याय के अन्तर्गत दूसरी पर्याय । मनुष्य - पर्याय में शिशु आदि की पर्याय अवान्तर पर्याय है । गुण और पर्याय में जो मूलभूत अन्तर है वह यह है गुण, द्रव्य में सहभावी रूप में और पर्याय क्रमभावी रूप में रहते हैं। दूसरा गुणों की न कभी उत्पत्ति होती है और न विनाश, वे तो सदा एक-से रहते हैं जबकि पर्यायों की उत्पत्ति भी होती है और विनाश भी। तीसरा एक-एक गुण में अनन्त पर्यायों का होना भी सम्भव है। यानी एक द्रव्य में अनन्त गुण हो सकते हैं और एक गुण में अनन्त पर्यायें भी हो सकती हैं।
गुण- पर्याय के आधार पर द्रव्य उत्पन्न भी होता है और नष्ट भी होता है साथ ही इसका अस्तित्व भी सदा बना रहता है, यानी द्रव्य की सत्ता भी है और परिवर्तन भी है। इस प्रकार जैनदर्शन में गुण- पर्याय वाले द्रव्य का स्वरूप सत्, यानी सत्ता (Existence — एक्सिस्टेन्स) को माना गया है। 'सत्' का लक्षण है - उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य से युक्त जो है वह सत् है । इन तीनों में ध्रौव्य द्रव्य के गुण से सम्बद्ध है और उत्पाद व व्यय द्रव्य की पर्यायों से सम्बन्धित हैं। जैसे - स्वर्ण एक द्रव्य है। कंगन उसकी एक अवस्था है या पर्याय है। स्वर्णकार उसको बदलकर माला या अन्य कोई चीज बना देता है। जो चीज वह बनाता है उसमें स्वर्ण द्रव्य तो पूर्ववत् ध्रौव्य बना रहता है। इसमें कंगन पर्याय नष्ट होकर माला पर्याय आदि में बदल जाता है। अतः स्वर्ण द्रव्य का सत् लक्षण उत्पाद, व्यय व ध्रौव्य तीनों से युक्त है। इसी प्रकार जीव द्रव्य के सम्बन्ध में समझ सकते हैं। जीव है वह कभी मनुष्य होता है तो कभी पशु, पक्षी, देव। इस प्रकार उसकी पर्यायें-अवस्थाएँ बदलती रहती हैं और इस परिवर्तन में जीव (Soul - सोल) सदा स्थिर रहता है। इस प्रकार द्रव्य तीन लक्षणों से सदा युक्त रहता है-एक सत् स्वभाव, दूसरा उत्पाद, व्यय, धौव्ययुक्त और तीसरा गुण व पर्यायवश । ये त्रिविध लक्षण प्रत्येक द्रव्य में प्रतिक्षण घटित होते रहते हैं । इस दृष्टि से लोक में जितने भी द्रव्य हैं, उतने ही द्रव्य सदा अवस्थित रहते हैं। प्रत्येक द्रव्य की यह विशेषता है कि वह कभी भी एक-दूसरे में बदलता नहीं है। लोक में सारे द्रव्य स्वतंत्र अस्तित्व वाले होते हैं और ये स्वतंत्र परिणमन करते हैं अर्थात् ये न एक-दूसरे पर निर्भर रहते हैं और न ही एक-दूसरे में परिवर्तित होते हैं।
विज्ञान जगत् में भी यह बात स्वीकृत है जिसकी पुष्टि डॉ. हेनशा के मत से होती है । यथा - "These elements are all separate in our mind. We cannot imagine that one of them could depend