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________________ * ११२ * सोलहवाँ बोल : दण्डक चौबीस - - - - - - - - - - - - - तीसरे प्रकार के देव हैं ज्योतिष्क। इनके लिए एक ही दण्डक है। ये प्रकाशवान विमानों में रहते हैं। सूर्य, चन्द्र, तारे आदि इनके विमान हैं। ये इनके क्रीड़ा-स्थल हैं। इनकी पहचान के लिए इनके चिह्न मुकुट में होते हैं। जैसे-सूर्य के मुकुट में सूर्यमण्डल का चिह्न आदि। इनके शरीर की प्रभा-ज्योति के स्थान दीप्त होने के कारण ये ज्योतिष्क देव कहलाते हैं। ये दो प्रकार के हैं-एक मनुष्य लोक में रहने वाले, जो भ्रमणशील हैं और मेरु पर्वत की प्रदक्षिणा करते रहते हैं और दूसरे मनुष्य लोक के बाहर वाले, जो निश्चल हैं, गति नहीं करते हैं। इनकी लेश्याएँ और प्रकाश एक समान रहता है। इनके पाँच भेद हैं (१) चन्द्र, (२) सूर्य, (३) ग्रह, (४) नक्षत्र, (५) तारा। ये जो हमें सूर्य, चन्द्र, तारे आदि दिखाई देते हैं, ज्योतिष्क देव नहीं हैं अपितु ये उनके विमान हैं। __ चौथे प्रकार के वैमानिक देव हैं। इनके लिए भी एक दण्डक है। ये अतिशय पुण्यवान होते हैं। ये दो भागों में बँटे हुए हैं (१) कल्पोपन्न, . (२) कल्पातीत। पहले प्रकार में छोटे-बड़े, स्वामी-सेवक आदि की मर्यादा रहती है, दूसरे में नहीं। इसमें सभी देव समान हैं। सभी अहमिन्द्र हैं। पहले प्रकार के देव बारह प्रकार के तथा दूसरे प्रकार के देव चौदह प्रकार के होते हैं। पहले प्रकार के देवों में जितनी भी जातियाँ हैं उन सबमें स्वामी-सेवक का भेद रहता है। दोनों प्रकार के देवों में सात बातें उत्तरोत्तर अधिक होती हैं, यानी ऊपर के देव नीचे के देवों से निम्न सात बातों में अधिक होते हैं (१) स्थिति-आयुकाल, (२) प्रभाव, (३) सुख, (४) द्युति,
SR No.002470
Book TitleAgam Gyan Ki Adharshila Pacchis Bol
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarunmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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