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________________ आगमज्ञान की आधारशिला : पच्चीस बोल : १११ उज्ज्वल व प्रकाशशील होता है। ये शुक्ल वर्ण वाले होते हैं। चौथे प्रकार के देवों का चिह्न गरुड़ है। ये ग्रीवा और वक्ष स्थल से अत्यधिक सुन्दर होते हैं। इनका वर्ण उज्ज्वल व श्यामल होता है । पाँचवें प्रकार के देवों का चिह्न घट है । इनका वर्ण शुक्ल होता है। छठवें प्रकार के देवों का चिह्न अश्व है। ये स्थूल सिर वाले व गोल शरीर वाले होते हैं। सातवें प्रकार के देवों का चिह्न वर्धमान सँकोरा संपुट है । इनका शरीर चिकना, स्निग्ध व रंग काला होता है। आठवें देव का चिह्न मकर है। ये श्यामल होते हैं। इनका कटि - प्रदेश व जंघा अधिक सुन्दर होते हैं । नवें देवों का चिह्न सिंह है । ये वक्ष स्थल, स्कन्ध आदि में अधिक सुन्दर होते हैं । दसवें देव अर्थात् दिक्कुमार का चिह्न हाथी है। ये भी श्यामल होते हैं। ये जंघा के अग्र भाग से और पैर से अधिक सुन्दर होते हैं। 1 दूसरे प्रकार के देव हैं व्यन्तर देव । इनके लिए केवल एक दण्डक निर्धारित है। ये मध्य लोक में पर्वत, कन्दरा, वन, वृक्ष व विवरों में रहते हैं । ये बालक के समान चपल स्वभावी होते हैं। कुछ मनुष्यों के सहायक और कुछ दुःखदायक होते हैं । इनके आठ भेद हैं 1 (१) पिशाच, (२) भूत, (३) यक्ष, (४) राक्षस, (५) किन्नर, (६) किंपुरुष, (७) महोरग. (८) गंधर्व । इन सभी के स्वभाव, प्रकृति आदि के आधार पर अनेक भेद-प्रभेद हैं। प्रत्येक देव के अलग-अलग चिह्न हैं जो अधिकांशतः वृक्ष जाति के हैं । जैसेपिशाच का चिह्न कदम्ब वृक्ष की ध्वजा, भूत का सुलस की ध्वजा, यक्ष का वट वृक्ष की ध्वजा, राक्षस का खट्वांग की ध्वजा, किन्नर का चिह्न अशोक वृक्ष की ध्वजा, किंपुरुष का चम्पक वृक्ष की ध्वजा, महोरग का नाग वृक्ष की ध्वजा और गंधर्व का तुम्बुरु वृक्ष की ध्वजा है।
SR No.002470
Book TitleAgam Gyan Ki Adharshila Pacchis Bol
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarunmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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