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* ११० सोलहवाँ बोल : दण्डक चौबीस
नहीं दिखाई देते हैं। ये तीव्र गति वाले होते हैं। मनचाहा रूप धारण करने की इनमें शक्ति होती है। इनकी आँखों के पलक नहीं झपकते हैं। पैर जमीन से चार अंगुल ऊँचे रहते हैं तथा इनके शरीर की छाया भी नहीं पड़ती है। देव सर्वाधिक भोगते हैं। ये देव चार प्रकार के कहे गए हैं
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सुख
(१) भवनवासी,
(२) व्यन्तर,
(३) ज्योतिष्क,
(४) वैमानिक ।
भवनवासी देव अदृश्य रूप से भवनों में रहने के कारण भवनपति कहलाते हैं। इनके भवन नीचे लोक में हैं किन्तु श्रेणीबद्ध नहीं हैं। इन देवों के नामों के पीछे 'कुमार' शब्द जुड़ा हुआ मिलता है जो मनोहारी, सुकुमारता तथा क्रीड़ाप्रियता का प्रतीक है। इन देवों की गति मृदु व लुभावनी होती है। इनके दस भेद हैं। इन देवों के लिए क्रमशः एक-एक दण्डक अर्थात् कुल दस दण्डक निर्धारित हैं। इनके नाम इस प्रकार हैं
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(१) असुरकुमार,
(२) नागकुमार,
(३) विद्युत्कुमार,
(४) सुपर्णकुमार,
(५) अग्निकुमार,
(६) पवनकुमार,
(७) स्तनितकुमार,
(८) उदधिकुमार,
(९) द्वीपकुमार,
(१०) दिक्कुमार।
पहले प्रकार के देवों (असुरकुमारों) का चिह्न चूड़ामणिरत्न है । इनके सिर पर मुकुट होता है। इनका शरीर सुन्दर, कृष्ण वर्ण और महाकाय होता है। दूसरे देवों का चिह्न सर्प है। इनका सिर व मुख प्रदेश सुन्दर तथा ये श्यामल वर्ण और
ति गति वाले होते हैं। तीसरे प्रकार के देवों का चिह्न वज्र है । इनका शरीर