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________________ * १०४ * पन्द्रहवाँ बोल : आत्मा आठ (३) योग आत्मा __ आत्मा जब योग से युक्त होती है तब योग आत्मा कहलाती है। जैनदर्शन में जीव की तीन प्रवृत्तियाँ मानी गई हैं-एक मन की प्रवृत्ति, दूसरी वचन की प्रवृत्ति और तीसरी काया की प्रवृत्ति। इन तीनों प्रवृत्तियों को या व्यापार को योग कहा गया है। आत्मा की जितनी भी प्रवृत्तियाँ हैं वे योग के द्वारा ही सम्पन्न होती हैं। अतः प्रवृत्तियुक्त आत्माओं को योग आत्मा कहा गया है। अयोगी केवली और सिद्धों में योग आत्मा नहीं होती है। इनके अतिरिक्त जितने भी संसारी जीव हैं, वे सब योग आत्माएँ हैं। (४) उपयोग आत्मा जीव की ज्ञान-दर्शनमय परिणति उपयोग आत्मा कहलाती है। उपयोग के विषय में कहा गया है कि जो परिणाम आत्मा के चैतन्य गुण का अनुसरण करते हैं, उपयोग कहलाते हैं और उपयोग से युक्त आत्मा को उपयोग आत्मा कहते हैं। यानी चेतना जब व्याप्त होती है तब वह उपयोग आत्मा है। चूँकि इसमें चेतना व्याप्त होती है और चेतना प्रत्येक जीव का स्वाभाविक और स्थायी गुण है। अतः उपयोग आत्मा प्रत्येक सिद्ध और संसारी जीवों में होती है। चूँकि उपयोग आत्मा का लक्षण है अतः कोई भी आत्मा उपयोग से रहित नहीं होती है। (५) ज्ञान आत्मा जीव की ज्ञानमय परिणति ज्ञान आत्मा कहलाती है। प्रत्येक जीव का ज्ञान निज गुण है और यह ज्ञान प्रत्येक आत्मा में न्यूनाधिक रूप से विद्यमान रहता है। अतः यह आत्मा सभी प्रकार के जीवों में होती है। ज्ञान दो प्रकार का होता है-एक सम्यक् ज्ञान और दूसरा मिथ्या ज्ञान। मिथ्या ज्ञान एक प्रकार से अज्ञान है क्योंकि इसमें मिथ्या दृष्टि होती है। मिथ्या दृष्टि के कारण मिथ्या ज्ञान को अज्ञान या कुज्ञान कहा गया है किन्तु ज्ञान का अर्थ जब हम सम्यक् ज्ञान से लेते हैं तब यह आत्मा केवल सम्यक् दृष्टि जीवों में होती है। (६) दर्शन आत्मा ___ दर्शन का अर्थ है पदार्थों का सामान्य बोध। इसमें चेतना शक्ति किसी पदार्थ-विशेष के प्रति विशेष रूप से उपयुक्त न होकर मात्र सामान्य रूप से उसे ग्रहण करती है। दर्शनयुक्त आत्मा दर्शन आत्मा कहलाती है। यह आत्मा सभी जीवों में होती है। सम्यक् दर्शन से अनुप्राणित आत्मा केवल सम्यक् दृष्टि
SR No.002470
Book TitleAgam Gyan Ki Adharshila Pacchis Bol
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarunmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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