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________________ आगमज्ञान की आधारशिला : पच्चीस बोल + १०५ * जीवों में ही होती है, इसी प्रकार मिथ्या दर्शन अर्थात् जीव आदि तत्त्वों के प्रति अयथार्थ श्रद्धान रखने वाली आत्मा मिथ्या दृष्टि जीवों में ही होती है। (७) चारित्र आत्मा . __ आत्मा की विशिष्ट संयम मूलक अवस्था चारित्र आत्मा कहलाती है। इसमें जीवों का परिणाम कर्मों का निरोध करने वाला होता है। चारित्र का अर्थ है अशुभ से निवृत्ति और शुभ में प्रवृत्ति। अतः जो आत्माएँ विरति सम्पन्न होती हैं वे चारित्र आत्मा में परिगणित हैं। (८) वीर्य आत्मा वीर्य का अर्थ है जीव की शक्ति व सामर्थ्य-विशेष। आत्मा की शक्ति वीर्य आत्मा के रूप में समझी जाती है अर्थात् वीर्ययुक्त आत्मा वीर्य आत्मा है। यह आत्मा संसारी और सिद्ध सभी जीवों में होती है। केवल इनमें अन्तर इतना ही है कि पहले प्रकार के जीवों में वीर्य क्रियारूप में रहता है और दूसरे प्रकार की आत्मा में अर्थात् सिद्ध जीवों में वीर्य लब्धिरूप में अर्थात् शक्तिरूप में विद्यमान रहता है। इस प्रकार इन आठों प्रकार की आत्माओं में द्रव्य आत्मा मूल है और शेष सातों आत्माओं में से कोई उसका लक्षण है, कोई गुण है तो कोई उसका दोष है अर्थात् कषाय कर्म-कृत दोष है, योग आत्मा की प्रवृत्ति है, उपयोग आत्मा का लक्षण है, ज्ञान आत्मा का गुण है, दर्शन आत्मा की रुचि या श्रद्धान है, चारित्र आत्मा की निवृत्ति रूप अवस्था है तथा वीर्य आत्मा की शक्ति है। ____ (आधार : भगवतीसूत्र १२/१०) प्रश्नावली १. आत्मा से आप क्या समझते हैं? इसके अस्तित्व को आप कैसे सिद्ध करेंगे? २. आत्मा के जो आठ भेद बताए गए हैं वे किस अपेक्षा से हैं? ३. जो आत्माएँ सभी जीवों में होती हैं उनके स्वरूप की चर्चा कीजिए। ४. आत्मा एक शरीर को छोड़कर दूसरे शरीर में कैसे प्रवेश करती है? ५. विरति सम्पन्न जीवों में किस आत्मा का उल्लेख किया गया है? ६. ऐसे कौन-से जीव हैं जिनमें कषाय आत्मा और योग आत्मा का अभाव है?
SR No.002470
Book TitleAgam Gyan Ki Adharshila Pacchis Bol
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarunmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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