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आगमज्ञान की आधारशिला : पच्चीस बोल : १०३
गुण सदा साथ रहता है किन्तु कर्मानुसार पर्यायें बदलती रहती हैं । यही आत्मा के सन्दर्भ में है। आत्मा का जो चैतन्य गुण है वह तो सदा एक-सा बना रहता है पर उसकी जो पर्याय है वह प्रतिक्षण बदलती रहती है। इसलिए आत्मा तो मूल में एक ही द्रव्य या तत्त्व है पर, पर्याय - भेद की दृष्टि से उसके अनेक रूप दिखाई देते हैं। पर्याय से बँधी आत्मा जीव कहलाती है। इस दृष्टि से आत्मा को जीव भी कह सकते हैं।
प्रस्तुत बोल में आत्मा के आठ रूपों का ही वर्णन हुआ है। ये इस प्रकार
हैं
(१) द्रव्य आत्मा,
(२) कषाय आत्मा,
(३) योग आत्मा,
(४) उपयोग आत्मा,
(५) ज्ञान आत्मा,
(६) दर्शन आत्मा,
(७) चारित्र आत्मा, (८) वीर्य आत्मा ।
(१) द्रव्य आत्मा
द्रव्य आत्मा चेतनामय, असंख्य, अविभाज्य प्रदेशों या अवयवों का एक अखण्ड समूह है। द्रव्य आत्मा जीव के अर्थ में भी प्रयुक्त है । द्रव्य आत्मा में केवल विशुद्ध आत्म- द्रव्य की ही विवेचना है। पर्यायों की सत्ता मिले होने पर भी उन्हें गौण कर दिया गया है। एक प्रकार से द्रव्य आत्मा शुद्ध चेतना है अस्तु यह त्रैकालिक सत्य है जिसके कारण यह कभी अनात्म द्रव्य नहीं
बनता।
(२) कषाय आत्मा
जीव या आत्मा की परिणति जब कषायों से रंजित होती है तब वह कषाय आत्मा कहलाती है अर्थात् कषायों से युक्त आत्मा कषाय आत्मा है। कषाय चार प्रकार की कही गई हैं-एक क्रोध, दूसरी मान, तीसरी माया और चौथी लोभ कषाय। उपशान्त मोह और क्षीण मोह वाली आत्माएँ कषाय आत्मा नहीं होती हैं । इनके अतिरिक्त शेष सभी संसारी आत्माएँ कषाय आत्माएँ हैं ।