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आगमज्ञान की आधारशिला : पच्चीस बोल : ९९
एक बार आत्मा जब मोक्ष दशा में पहुँच जाती है तो फिर वह पुनः बद्ध नहीं होती। वह संसार में पुनः न तो जन्म लेती है और न पुनः मरण को प्राप्त होती है । जैसे दग्ध बीज को कितना ही जल दिया जाये या कितनी ही उर्वरक भूमि में बोया जाये, पर वह बीज कभी भी अंकुरित नहीं हो सकता। वैसे ही आत्मा जब बन्ध और बन्ध के कारणों से मुक्त हो चुकी हो तो फिर वह कभी संसार में नहीं आती है । मोक्ष के विषय में कहा गया है कि भव्य जीव ही मोक्ष जाते हैं और अभव्य जीव मोक्ष नहीं जाते हैं क्योंकि भव्य और अभव्य जीवों में क्रमशः मोक्ष जाने की योग्यता और अयोग्यता होती है । मोक्ष प्राप्ति के चार साधन या उपाय इस प्रकार हैं
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(१) सम्यक् ज्ञान,
(२) सम्यक् दर्शन,
(३) सम्यक् चारित्र,
(४) सम्यक् तप ।
मिथ्यात्व से रहित विवेकपूर्वक अर्थात् सम्यक्त्व के साथ पदार्थों का ज्ञान श्रद्धान और उसे व्यवहार में लाना तथा तप के साथ विशुद्ध परिणामों का होना- इन चार साधनों से कोई भी भव्य जीव मोक्ष प्राप्त कर सकता है।
इस प्रकार नव तत्त्वों के एक सौ पन्द्रह भेदों का विवेचन संक्षेप में समझाया गया है।
( आधार : विभिन्न आगम: स्थानांग, समवायांग - भगवती, प्रज्ञापना आदि) प्रश्नावली
१. तत्त्व किसे कहते हैं? सोदाहरण समझाइये |
२. तत्त्वों के महत्त्व को दर्शाते हुए इनके भेदों का उल्लेख कीजिए ।
३. कौन-से तत्त्व ज्ञेय हैं और कौन-से हेय तथा उपादेय हैं और क्यों ?
४. जीव तत्त्वों के बारे में आप क्या जानते हैं? संक्षेप में इनके भेदों का वर्णन कीजिये ।
५. अजीव तत्त्वों के भेदों को स्पष्ट कीजिए ।
६. पाप और पुण्य से आप क्या समझते हैं?
७. “संवर आस्रव तत्त्व का प्रतिपक्षी है।" इस कथन के मन्तव्य को समझाइए ।
८. निर्जरा और मोक्ष में अन्तर स्पष्ट करते हुए इनके स्वरूप पर प्रकाश डालिए।