SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 114
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पन्द्रहवाँ बोल : आत्मा आठ ( आत्मा के अस्तित्व के साधक-बाधक प्रमाण और आत्मा के स्वरूप का वर्णन ) (१) द्रव्य आत्मा, (२) कषाय आत्मा, (३) योग आत्मा, (४) उपयोग आत्मा, (५) ज्ञान आत्मा, (६) दर्शन आत्मा, (७) चारित्र आत्मा, (८) वीर्य आत्मा । आत्मा के अस्तित्व को जहाँ सभी आत्मवादी दर्शनों ने स्वीकारा है, वहीं वैज्ञानिकों ने इसके अस्तित्व को पूर्ण रूप से अस्वीकार भी नहीं किया है। आधुनिक विज्ञान अब विश्व को जड़यन्त्र नहीं मानता है। उसमें चेतना को महत्त्व दिया गया है। इस सन्दर्भ में अलबर्ट आइन्स्टीन कहते हैं- " मैं जानता हूँ कि सारी प्रकृति में चेतना काम कर रही है।" इनके इस कथन का समर्थन सर ए. एस. एडिंग्टन, सर जेम्स जीन्स, जे. वी. एस. हेल्डन, आर्थर एवं कॉम्पटन तथा सर ऑलीवर लॉज आदि वैज्ञानिकों ने भी किया है। यह चेतना आत्मा का ही एक लक्षण है । यद्यपि सभी आत्मवादी दर्शनों ने आत्मा के स्वरूप पर चर्चा की है, पर आत्मस्वरूप सम्बन्धी उनकी यह चर्चा एकान्तिक है क्योंकि इनमें आत्मा की एक-एक विशेषता या लक्षण को लेकर आत्मा के स्वरूप को अभिव्यक्त किया गया है जबकि आत्मा अनेक लक्षणों से युक्त है। आत्मा में व्याप्त अनेक लक्षणों पर चर्चा कर जैनदर्शन ने आत्मा के स्वरूप का सर्वांगीण विवेचन किया है। जैनदर्शन के अनुसार आत्मा एक शाश्वत तत्त्व है। यह भूत, वर्तमान व भविष्य तीनों कालों में सदा विद्यमान रहता है। इसका न तो जन्म होता है और न मरण । यह सदा ध्रुव है, अनादि है, अनन्त है, नित्यानित्य है । एक अपेक्षा से
SR No.002470
Book TitleAgam Gyan Ki Adharshila Pacchis Bol
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarunmuni
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2011
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy